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सितंबर, 2024 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कश्मीर के कर्कोट नाग वंश के राजा श्री ललितादित्य मुक्तापीड

 मौखरि राजा यशोवर्मन के बाद उनके मित्र कश्मीर के कर्कोट नाग वंश के राजा श्री ललितादित्य मुक्तापीड सम्राट बने जिन्होंने संपूर्ण भारत पर विजय प्राप्त की। जिनका युद्ध कार्तिकेय पुर राजवंश के बसंत देव से हुए था इस युद्ध में जितने के बाद बसंत देव उत्तराखंड के सम्राट बने ललितादित्य मुक्तापीड  राज्याभिषेक की तिथि 732 ई. मानी जाती है। इस समय तक सम्राट यशोवर्मन वृद्ध हो गये थे। अपनी विशाल विजयों के कारण, ललितादित्य अपने समय का सबसे प्रमुख भारतीय शासक बन गया, जिसकी विजयें संभवतः गुप्त सम्राटों के बाद सबसे व्यापक थीं। कल्हण की राजतरंगिणी के अनुसार सम्राट ललितादित्य का विजय अभियान कन्नौज, मगध, गौड़, कलिंग, कर्नाट पर विजय प्राप्त करने के बाद कावेरी के तट तक पहुँचा। वहां से उसने पश्चिम में सप्राकोंकन, द्वारिका और अवंती पर और उत्तर में कम्बोज, तुषारस, मुमुनिस, तिब्बती, दर्दस, प्रागज्योतिष, श्रीराज्य और उत्तर कुरु पर विजय प्राप्त की। अरब सेनापति कुतैव ने कश्मीर पर आक्रमण कर दिया था। सम्राट ललितादित्य आगे बढ़े और अरब मुस्लिम सेना को कड़ा जवाब दिया। अरब सेनापति कुतैब मारा गया और शेष सेना भाग गई...

नाग वंश के राजा श्री ललितादित्य मुक्तापीड

 मौखरि राजा यशोवर्मन के बाद उनके मित्र कश्मीर के कर्कोट नाग वंश के राजा श्री ललितादित्य मुक्तापीड सम्राट बने जिन्होंने संपूर्ण भारत पर विजय प्राप्त की। जिनका युद्ध कार्तिकेय पुर राजवंश के बसंत देव से हुए था इस युद्ध में जितने के बाद बसंत देव उत्तराखंड के सम्राट बने ललितादित्य मुक्तापीड  राज्याभिषेक की तिथि 732 ई. मानी जाती है। इस समय तक सम्राट यशोवर्मन वृद्ध हो गये थे। अपनी विशाल विजयों के कारण, ललितादित्य अपने समय का सबसे प्रमुख भारतीय शासक बन गया, जिसकी विजयें संभवतः गुप्त सम्राटों के बाद सबसे व्यापक थीं। कल्हण की राजतरंगिणी के अनुसार सम्राट ललितादित्य का विजय अभियान कन्नौज, मगध, गौड़, कलिंग, कर्नाट पर विजय प्राप्त करने के बाद कावेरी के तट तक पहुँचा। वहां से उसने पश्चिम में सप्राकोंकन, द्वारिका और अवंती पर और उत्तर में कम्बोज, तुषारस, मुमुनिस, तिब्बती, दर्दस, प्रागज्योतिष, श्रीराज्य और उत्तर कुरु पर विजय प्राप्त की। अरब सेनापति कुतैव ने कश्मीर पर आक्रमण कर दिया था। सम्राट ललितादित्य आगे बढ़े और अरब मुस्लिम सेना को कड़ा जवाब दिया। अरब सेनापति कुतैब मारा गया और शेष सेना भाग गई...

नवनाथ और 84 सिद्ध नाथ संप्रदाय

 नवनाथ : आदिनाथ, अचल अचंभानाथ, संतोषनाथ, सत्यानाथ, उदयनाथ, गजबलिनाथ, चौरंगीनाथ, मत्स्येंद्रनाथ और गौरखनाथ। 84 SIDHA 1. कपिल नाथ जी 2. सनक नाथ जी 3. लंक्नाथ रवें जी 4. सनातन नाथ जी 5. विचार नाथ जी / भ्रिथारी नाथ जी 6. चक्रनाथ जी 7. नरमी नाथ जी 8. रत्तन नाथ जी 9. श्रृंगेरी नाथ जी 10. सनंदन नाथ जी 11. निवृति नाथ जी 12. सनत कुमार जी 13. ज्वालेंद्र नाथ जी 14. सरस्वती नाथ जी 15. ब्राह्मी नाथ जी 16. प्रभुदेव नाथ जी 17. कनकी नाथ जी 18. धुन्धकर नाथ जी 19. नारद देव नाथ जी 20. मंजू नाथ जी 21. मानसी नाथ जी 22. वीर नाथ जी 23. हरिते नाथ जी 24. नागार्जुन नाथ जी 25. भुस्कई नाथ जी 26. मदर नाथ जी 27. गाहिनी नाथ जी 28. भूचर नाथ जी 29. हम्ब्ब नाथ जी 30. वक्र नाथ जी 31. चर्पट नाथ जी 32. बिलेश्याँ नाथ जी 33. कनिपा नाथ जी 34. बिर्बुंक नाथ जी 35. ज्ञानेश्वर नाथ जी 36. तारा नाथ जी 37. सुरानंद नाथ जी 38. सिद्ध बुध नाथ जी 39. भागे नाथ जी 40. पीपल नाथ जी 41. चंद्र नाथ जी 42. भद्र नाथ जी 43. एक नाथ जी 44. मानिक नाथ जी 45. गेहेल्लेअराव नाथ जी 46. काया नाथ जी 47. बाबा मस्त नाथ जी 48. यज्यावालाक्य नाथ जी 49. गौर ...

महायोगी गोरखनाथ को शिवगोरक्ष कहने की परम्परा प्राचीन काल से चली आ रही है

 महायोगी गोरखनाथ को शिवगोरक्ष कहने की परम्परा प्राचीन काल से चली आ रही है शिव योगेश्वर हैं नाथ सम्प्रदाय मे यह कहा जाता है कि शिव ने ‘गोरख’ के रूप मे मत्स्येंदारनाथजी से महायोगज्ञान पाया था । दत्तात्रेयजी का वचन है – स्वामी तुमेव गोरष तुमेव रछिपाल अनंत सिधां माही तुम्हें भोपाल || तुम हो स्यंभूनाथ नृवांण | प्रणवे दत्त गोरख प्रणाम || हे गोरखनाथजी !  आप ही रक्षक हैं असंख्य सिद्धों के आप शिरोमणि हैं आप साक्षातं शिव (शम्भुनाथ) हैं आप अलखनिरंजन परमेश्वर हैं  मैं नतमस्तक आप को प्रणाम करता हूँ  संत कबीर का कथन है – गोरख सोई ग्यान गमि गहै | महादेव सोई मन की लहै || सिद्ध सोई जो साधै ईती | नाथ सोई जो त्रिभुवन जती || ��श्रीगोरखनाथ, महादेव, सिद्ध और नाथ, चारों के चारों अभिन्न-स्वरुप एकतत्व हैं | महायोगी गोरखनाथजी शिव हैं, वे ही शिवगोरक्ष हैं | उनहोने महासिद्ध नाथयोगी के रूप मे दिवि योगशरीर में प्रकट होकर अपने ही भीतर व्याप्त अलखनिरंजन परबृहंम परमेश्वर का साक्षात्कार कर समस्त जगत् को योगामृत प्रदान किया | ����कल्पद्रुमतन्त्र मे गोरक्षस्तोत्रराज मे भगवान क्रष्ण ने उनका शिव रूप मे स...

उत्तराखण्ड और कुणिन्द राजवंश

  उत्तराखण्ड के प्राचीन इतिहास से संबंधित एकमात्र ऐतिहासिक सामग्री कुणिन्द वंश की प्राप्त होती है, जिसे मुख्यतः दो भागों में विभाजित कर सकते हैं- पुरातात्विक एवं साहित्यिक सामग्री। पुरातात्विक सामग्री में कुणिन्द मुद्राएं और साहित्यिक सामग्री में धार्मिक ग्रंथ महत्वपूर्ण हैं। प्राचीन काल से तृतीय शताब्दी ईस्वी पूर्व तक कुणिन्द इतिहास का एक मात्र स्रोत्र धार्मिक ग्रंथ हैं, जिनमें महाभारत, रामायण और मार्कण्डेय पुराण प्रमुख हैं। कुणिन्दों का उल्लेख ‘‘रामायण, महाभारत तथा मार्कण्डेय आदि पुराणों में त्रिगर्तों, कुलूतों, औदुम्बरों आदि जातियों के साथ मिलता है।’’ कुणिन्दों का सबसे प्राचीन उल्लेख महाभारत से प्राप्त होता है, जिसके अनुसार कुणिन्द राजा ‘सुबाहु’ ने महाभारत के युद्ध में प्रतिभाग किया था। जबकि ‘‘रामायण के पुलिन्द को कुछ विद्वान कुलिन्द पढ़ते हैं (डी.आर. मनकद)।’’      साहित्यिक स्रोतों के अतिरिक्त मुद्राएं कुणिन्द राज्य के सबसे प्रामाणिक स्रोत्र हैं, जिनके माध्यम से विद्वानों ने कुलिन्द राज्य के भूगोल को रेखांकित करने का प्रयास किया है। मध्य हिमालय में 200 ई. पू. से ...

रंगपाल नाम से विख्यात महाकवि रंग नारायण पाल जूदेश वीरेश पाल

  रंगपाल नाम से विख्यात महाकवि रंग नारायण पाल जूदेश वीरेश पाल का जन्म सन्तकबीर नगर (उत्तर प्रदेश) के नगर पंचायत हरिहरपुर में फागुन कृष्ण १० संवत १९२१ विक्रमी को हुआ था। उनके पिता का नाम विश्वेश्वर वत्स पाल तथा माता का नाम श्रीमती सुशीला देवी था। उनके पिता जी राजा mahuli राज्य के वंशज थे। वे एक समृद्धशाली तालुक्केदार थे। उनके पिता जी साहित्यिक वातावरण में पले थे तथा विदुषी माँ के सानिध्य का उन पर पूरा प्रभाव पड़ा था। उनकी माँ संस्कृत व हिन्दी की उत्कृष्ट कवयित्री थीं। उनकी मृत्यु ६२ वर्ष की अवस्था में भाद्रपद कृष्ण १३ संवत १९९३ विक्रमी में हुई थी। माताजी से साहित्य का अटूट लगाव का पूरा प्रभाव रंगपाल पर पड़ा, जिसका परिणाम था कि स्कूली शिक्षा से एकदम दूर रहने वाले रंगपाल में संगीत की गहरी समझ थी। वे ‘बस्ती जनपद के छन्दकारों का सहित्यिक योगदान’ के भाग १ में शोधकर्ता डा. मुनिलाल उपाध्याय ‘सरस’ ने पृ. ५९ से ९० तक ३२ पृष्ठों में उनके विषय में विस्तृत वर्णन प्रस्तुत किया है। रंगपाल जी को उन्होंने द्वितीय चरण के प्रथम कवि के रुप में चयनित किया है। वे एक आश्रयदाता, वर्चस्वी संगीतकार तथा महान क...

भारत में शासन करने वाले शासकों का सही क्रम

  प्रमुख उत्तर भारत में हर्षवर्धन थे जबकि दक्षिण भारत में चालुक्य, पल्लव, राष्ट्रकूट, पांड्य मुख्य शासक थे। भारत पर सबसे पहले किसने शासन किया? सम्राट अशोक, चंद्रगुप्त मौर्य के पोते, जिन्होंने मगध में मौर्य वंश की स्थापना की, भारत के पहले शासक थे जिन्होंने पहले उत्तर भारतीय राज्यों को एकीकृत किया। मुगल शासक (1526-1857) बाबर, 1526-1530 बाबर भारत की धरती पर पहला मुगल शासक था। उन्होंने अफगानों और राजपूतों के खिलाफ पानीपत, कंवा और घाघरा की लड़ाई में जीत हासिल की और भारत में मुगल शासन की नींव रखी। सही क्रम 1 सूर्यवंशी - इक्ष्वाकु राजवंश 2 चंद्रवंशी–पुरुवंश 2.1 सम्राट पुरु वंश 2.2 सम्राट भरत वंश 2.3 पांचाल राज्य 3 चंद्रवंशी–यदुवंश 3.1 हैहय वंश 3.2 क्रोष्टा वंश 3.2.1 वृष्णि वंश 3.2.2 चेदि वंश 3.2.3 कुकुरा राजवंश 4 मगध के राजवंश ( सी. 1700–26 ई.पू) 4.1 प्रारंभिक मगध राजवंश 4.2 बृहद्रथ राजवंश (सी. 1700–682 ई.पू) 4.3 प्राचीन गणराज्य (सी. 1200–450 ई.पू) 4.4 प्रद्योत राजवंश (सी. 682–544 ई.पू) 4.5 हर्यक साम्राज्य (सी. 544–413 ई.पू) 4.6 शिशुनाग राजवंश (सी. 413–345 ई.पू) 4.7 नंद साम्राज्य (सी. 345...

भारतीय संस्कृति एवं आध्यात्मिक रचनाएं

 1-अष्टाध्यायी               पाणिनी 2-रामायण                   वाल्मीकि 3-महाभारत                 वेदव्यास 4-अर्थशास्त्र                  चाणक्य 5-महाभाष्य                  पतंजलि 6-सत्सहसारिका सूत्र     नागार्जुन 7-बुद्धचरित                  अश्वघोष 8-सौंदरानन्द                 अश्वघोष 9-महाविभाषाशास्त्र        वसुमित्र 10- स्वप्नवासवदत्ता        भास 11-कामसूत्र               वात्स्यायन 12-कुमारसंभवम्        कालिदास 13-अभिज्ञानशकुंतलम्    कालिदास   14-विक्रमोउर्वशियां     कालिदास 15-मेघदूत          ...