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महायोगी गोरखनाथ को शिवगोरक्ष कहने की परम्परा प्राचीन काल से चली आ रही है

 महायोगी गोरखनाथ को शिवगोरक्ष कहने की परम्परा प्राचीन काल से चली आ रही है


शिव योगेश्वर हैं नाथ सम्प्रदाय मे यह कहा जाता है कि शिव ने ‘गोरख’ के रूप मे मत्स्येंदारनाथजी से महायोगज्ञान पाया था ।


दत्तात्रेयजी का वचन है –

स्वामी तुमेव गोरष तुमेव रछिपाल

अनंत सिधां माही तुम्हें भोपाल ||

तुम हो स्यंभूनाथ नृवांण |

प्रणवे दत्त गोरख प्रणाम ||


हे गोरखनाथजी ! 

आप ही रक्षक हैं असंख्य सिद्धों के आप शिरोमणि हैं आप साक्षातं शिव (शम्भुनाथ) हैं आप अलखनिरंजन परमेश्वर हैं 

मैं नतमस्तक आप को प्रणाम करता हूँ 


संत कबीर का कथन है –

गोरख सोई ग्यान गमि गहै |

महादेव सोई मन की लहै ||

सिद्ध सोई जो साधै ईती |

नाथ सोई जो त्रिभुवन जती ||


��श्रीगोरखनाथ, महादेव, सिद्ध और नाथ, चारों के चारों अभिन्न-स्वरुप एकतत्व हैं | महायोगी गोरखनाथजी शिव हैं, वे ही शिवगोरक्ष हैं | उनहोने महासिद्ध नाथयोगी के रूप मे दिवि योगशरीर में प्रकट होकर अपने ही भीतर व्याप्त अलखनिरंजन परबृहंम परमेश्वर का साक्षात्कार कर समस्त जगत् को योगामृत प्रदान किया |


����कल्पद्रुमतन्त्र मे गोरक्षस्तोत्रराज मे भगवान क्रष्ण ने उनका शिव रूप मे स्तवन किया है कि :-


��हे गोरक्षनाथ जी – 

आप निरंजन, निराकार, निर्विकल्प, निरामय, अगम्य, अगोचर, अल्क्ष्य हैं 

सिद्ध आप की वन्दना करते हैं 

आप को नमस्कार है आप हठयोग के प्रवर्तक शिव हैं 

अपने गुरु मत्स्येंदारनाथ की कीर्ति को बढ़ाने वाले हैं 

योगी मन मे आप का ध्यान करते हैं | आप को नमस्कार है आप विश्व के प्रकाशक हैं आप विश्वरूप हैं


��हे गोरक्ष ! 

आप को नमस्कार है आप असंख्य लोकों के स्वामी हैं, नाथों के नाथशिरोमणि हैं, 

आपको नमस्कार है भक्तों के प्रति अनुरक्त होकर ही शिवस्वरुप गोरक्ष योगानुशासन का उपदेश देते हैं


����अपने ही जगदगुरुस्वरुप शक्तियुक्त आदिनाथ को नमस्कार कर गोरक्षनाथ सिद्धसिद्धान्त का बखान करते हैं |


����महकलयोगशास्त्र मे शिव ने स्वयं कहा है कि :--


मैं ही गोरक्ष – गोरखनाथ हूँ – हमारे इस रूप का बोध प्राप्त करना चाहिए | (नाथ) योगमार्ग के प्रचार के लिए मैंने गोरक्षरूप धारण किया है |


��अहमेवस्मि गोरक्षो मद्रुपं तन्निबोधत

योगमार्गप्रचाराय मया रूपमिदं धृतम् |


��अलख आदेश योगी गोरख �

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