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सूर्यवंशी_अर्कवंशी_क्षत्रियों की शाखा सूर्यवंशी kshatriya (#राजपूत कुल) की ब्रह्मा जी से लेकर श्री राम जी तक वंशावली (भाग २)।। 🙏🚩

#सूर्यवंशी_अर्कवंशी_क्षत्रियों की शाखा सूर्यवंशी kshatriya (#राजपूत कुल) की ब्रह्मा जी से लेकर श्री राम जी तक वंशावली (भाग २)।। 🙏🚩 आपने पिछले अध्याय 1में ब्रह्मा, विष्णु, महेश (शिव) से लेकर, ब्रह्मा जी के 59 पुत्रों तक का इतिहास पढ़ा । अब उससे आगे आप अध्याय 2 में पढ़िए ब्रह्माजी से लेकर भगवान श्री राम तक का इतिहास। 01 - ब्रह्माजी - ब्रह्माजी से मरीचि हुए। 02 - मरीचि - मरीचि के पुत्र कश्यप हुए। 03 - कश्यप - के पुत्र विवस्वान थे। विवस्वान् को सूर्यदेव (प्रत्यक्ष सूर्य नहीं) भी कहा जाता था। विवस्वान से ही सूर्यवंश चला। 04 - विवस्वान - विवस्वान के पुत्र वैवस्वत मनु हुए। 05 वैवस्वत मनु - वैवस्वत मनु के दस पुत्र हुए -: 01 – इल (‘‘इला’) 02 - इक्ष्वाकु 03 - कुशनाम (नाभाग) 04 - अरिष्ट 05 – धृष्ट 06 – नरिष्यन्त 07 - करुष 08 - महाबली 09 - शर्याति 10 - पृषध उपरोक्त वैवस्वत मनु के दस पुत्रों में से दूसरे पुत्र का नाम इक्ष्वाकु था। इक्ष्वाकु से ही आगे वंश व्रद्धि हुई। 06 - इक्ष्वाकु 07 – विकुक्षि (शशाद) 08 - कुकुत्स्थ 09 - अनेनस् 10 - पृथु 11 - विष्टराश्व 12 - आर्द्र 13 - युवनाश्व 14- श्रावस्त 15- बृहदश्व 16 - कुवलाश्व 17- दृढाश्व 18- प्रमोद 19 - हरयश्व 20 - निकुम्भ 21 - संहताश्व 22 - अकृशाश्व 23 - प्रसेनजित् 24- युवनाश्व २ 25 - मान्धातृ 26- पुरुकुत्स 27- त्रसदस्यु 28 - सम्भूत 29- अनरण्य 30 - त्रसदश्व 31 - हरयाश्व २ 32 - वसुमत 33 - त्रिधनवन् 34 - त्रय्यारुण 35 - सत्यव्रत 36 - हरिश्चन्द्र - राजा हरिश्चंद्र अयोध्या के प्रसिद्ध सूर्यवंशी राजा थे जो सत्यव्रत के पुत्र थे। ये अपनी सत्यनिष्ठा के लिए अद्वितीय हैं और इसके लिए इन्हें उनकी रानी तारा (शैव्या) अनेक कष्ट सहने पड़े। रोहिताश्व राजा हरिश्चंद्र के पुत्र थे। 37 - रोहित (रोहिताश्व) 38- हरित 39 - विजय 40 - रुरुक 41 - वृक 42 - बाहु 43 - सगर 44- असमञ्जस् 45 - अंशुमन्त 46- दिलीप १ 47 - भगीरथ 48 - श्रुत 49 - नाभाग 50 - अम्बरीश 51 - सिन्धुद्वीप 52 - अयुतायुस् 53 - ऋतुपर्ण 54 - सर्वकाम 55- सुदास 56 - मित्रसह 57- अश्मक 58- मूलक 59 - शतरथ 60 - ऐडविड 61 - विश्वसह १ 62 - दिलीप २ 63 - दीर्घबाहु 64 - रघु - रघु के अज हुये। 65 - अज - अज ने विदर्भ की राजकुमारी इंदुमति के स्वयंवर में जाकर उन्हें अपनी पत्नी बनाया । अज अपनी पत्नी इन्दुमति से बहुत प्रेम करते थे। एक बार नारदजी प्रसन्नचित्त अपनी वीणा लिए आकाश में विचर रहे थे। संयोगवश उनकी विणा का एक फूल टूटा और बगीचे में सैर कर रही रानी इंदुमति के सिर पर गिरा जिससे उनकी मृत्यु हो गई। राजा अज इंदुमति के वियोग में विह्वल हो गए और अन्त में जल-समाधि ले ली। अज के पुत्र दशरथ हुये। 66- दशरथ - दशरथ के पुत्र राम, भरत, लक्ष्मण, शत्रुघ्न हुये। इन चारोँ भाइयों का का जन्म ब्रह्माजी की 67वीँ पिढी मेँ हुआ था। 01 - भगवान श्री राम 02 - भरत 03 - लक्ष्मण 04 – शत्रुघ्न भरत के दो पुत्र थे - 01 - तार्क्ष 02 - पुष्कर लक्ष्मण के दो पुत्र थे – 01 - चित्रांगद 02 - चन्द्रकेतु शत्रुघ्न के क दो पुत्र थे – 01 - सुबाहु 02 - शूरसेन (मथुरा का नाम पहले शूरसेन था) श्रीराम की दो बहनें भी थी एक शांता और दूसरी कुकबी। राम की बहन का नाम शांता था, जो चारों भाइयों से बड़ी थीं। शांता राजा दशरथ और कौशल्या की पुत्री थीं, लेकिन पैदा होने के कुछ वर्षों बाद कुछ कारणों से राजा दशरथ ने शांता को अंगदेश के राजा रोमपद को दे दिया था। भगवान राम की बड़ी बहन का पालन-पोषण राजा रोमपद और उनकी पत्नी वर्षिणी ने किया, जो महारानी कौशल्या की बहन अर्थात राम की मौसी थीं। 01 - पहली :- वर्षिणी नि:संतान थीं तथा एक बार अयोध्या में उन्होंने हंसी-हंसी में ही बच्चे की मांग की। दशरथ भी मान गए। रघुकुल का दिया गया वचन निभाने के लिए शांता अंगदेश की राजकुमारी बन गईं। शांता वेद, कला तथा शिल्प में पारंगत थीं और वे अत्यधिक सुंदर भी थीं। शांता का विवाह महर्षि विभाण्डक के पुत्र ऋंग ऋषि से हुआ। एक दिन जब विभाण्डक नदी में स्नान कर रहे थे, तब नदी में ही उनका वीर्यपात हो गया। उस जल को एक हिरणी ने पी लिया था जिसके फलस्वरूप ऋंग ऋषि का जन्म हुआ था। एक बार एक ब्राह्मण अपने क्षेत्र में फसल की पैदावार के लिए मदद करने के लिए राजा रोमपद के पास गया, तो राजा ने उसकी बात पर ध्यान नहीं दिया। अपने भक्तए की बेइज्जलती पर गुस्साफए इंद्रदेव ने बारिश नहीं होने दी, जिस वजह से सूखा पड़ गया। तब राजा ने ऋंग ऋषि को यज्ञ करने के लिए बुलाया। यज्ञ के बाद भारी वर्षा हुई। जनता इतनी खुश हुई कि अंगदेश में जश्नग का माहौल बन गया। तभी वर्षिणी और रोमपद ने अपनी गोद ली हुई बेटी शां‍ता का हाथ ऋंग ऋषि को देने का फैसला किया। राजा दशरथ और इनकी तीनों रानियां इस बात को लेकर चिंतित रहती थीं कि पुत्र नहीं होने पर उत्तराधिकारी कौन होगा। इनकी चिंता दूर करने के लिए ऋषि वशिष्ठ सलाह देते हैं कि आप अपने दामाद ऋंग ऋषि से पुत्रेष्ठि यज्ञ करवाएं। इससे पुत्र की प्राप्ति होगी। दशरथ ने उनके मंत्री सुमंत की सलाह पर पुत्रकामेष्ठि यज्ञ में महान ऋषियों को बुलाया। इस यज्ञ मंद दशरथ ने ऋंग ऋषि को भी बुलाया। ऋंग ऋषि एक पुण्य आत्मा थे तथा जहां वे पांव रखते थे वहां यश होता था। सुमंत ने ऋंग को मुख्य ऋत्विक बनने के लिए कहा। दशरथ ने आयोजन करने का आदेश दिया। पहले तो ऋंग ऋषि ने यज्ञ करने से इंकार किया लेकिन बाद में शांता के कहने पर ही ऋंग ऋषि राजा दशरथ के लिए पुत्रेष्ठि यज्ञ करने के लिए तैयार हुए थे। लेकिन... दशरथ ने केवल ऋंग ऋषि (उनके दामाद) को ही आमंत्रित किया लेकिन ऋंग ऋषि ने कहा कि मैं अकेला नहीं आ सकता। मेरी पत्नी शांता को भी आना पड़ेगा। ऋंग ऋषि की यह बात जानकर राजा दशरथ विचार में पड़ गए, क्योंकि उनके मन में अभी तक दहशत थी कि कहीं शांता के अयोध्या में आने से फिर से अकाल नहीं पड़ जाए। लेकिन जब पुत्र की कामना से पुत्र कामेष्ठि यज्ञ के दौरान उन्होंतने अपने दामाद ऋंग ऋषि को बुलाया, तो दामाद ने शां‍ता के बिना आने से इंकार कर दिया। तब पुत्र कामना में आतुर दशरथ ने संदेश भिजवाया कि शांता भी आ जाए। शांता तथा ऋंग ऋषि अयोध्या पहुंचे। शांता के पहुंचते ही अयोध्या में वर्षा होने लगी और फूल बरसने लगे। शांता ने दशरथ के चरण स्पर्श किए। दशरथ ने आश्चर्यचकित होकर पूछा कि 'हे देवी, आप कौन हैं? आपके पांव रखते ही चारों ओर वसंत छा गया है।' जब माता-पिता (दशरथ और कौशल्या) विस्मित थे कि वो कौन है? तब शांता ने बताया कि 'वो उनकी पुत्री शांता है।' दशरथ और कौशल्या यह जानकर अधिक प्रसन्न हुए। वर्षों बाद दोनों ने अपनी बेटी को देखा था। दशरथ ने दोनों को ससम्मान आसन दिया और उन दोनों की पूजा-आरती की। तब ऋंग ऋषि ने पुत्रकामेष्ठि यज्ञ किया तथा इसी से भगवान राम तथा शांता के अन्य भाइयों का जन्म हुआ। कहते हैं कि पुत्रेष्ठि यज्ञ कराने वाले का जीवनभर का पुण्य इस यज्ञ की आहुति में नष्ट हो जाता है। इस पुण्य के बदले ही राजा दशरथ को पुत्रों की प्राप्ति हुई। राजा दशरथ ने ऋंग ऋषि को यज्ञ करवाने के बदले बहुत-सा धन दिया जिससे ऋंग ऋषि के पुत्र और कन्या का भरण-पोषण हुआ और यज्ञ से प्राप्त खीर से राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न का जन्म हुआ। ऋंग ऋषि फिर से पुण्य अर्जित करने के लिए वन में जाकर तपस्या करने लगे। जनता के समक्ष शान्ता ने कभी भी किसी को नहीं पता चलने दिया कि वो राजा दशरथ और कौशल्या की पुत्री हैं। यही कारण है कि रामायण या रामचरित मानस में उनका खास उल्लेख नहीं मिलता है। कहते हैं कि जीवनभर शांता राह देखती रही अपने भाइयों की कि वे कभी तो उससे मिलने आएंगे, पर कोई नहीं गया उसका हाल-चाल जानने। मर्यादा पुरुषोत्तम भी नहीं, शायद वे भी रामराज्यक में अकाल पड़ने से डरते थे। कहते हैं कि वन जाते समय भगवान राम अपनी बहन के आश्रम के पास से भी गुजरे थे। तनिक रुक जाते और बहन को दर्शन ही दे देते। बिन बुलाए आने को राजी नहीं थी शांता। सती माता की कथा सुन चुकी थी बचपन में, दशरथ से। ऐसा माना जाता है कि ऋंग ऋषि और शांता का वंश ही आगे चलकर सेंगर राजपूत बना। सेंगर राजपूत को ऋंगवंशी राजपूत कहा जाता है। ऋंग ऋषि - ऋंग ऋषि विभण्डक ऋषि तथा अप्सरा उर्वशी के पुत्र व कश्यप ऋषि के पौत्र बताये जाते हैं। । तथा महर्षि कश्यप, ब्रम्हा के मानस पुत्र मरीचि के पुत्र थे, महर्षि कश्यप ने ब्रम्हा के पुत्र प्रजापति दक्ष की 17 कन्याओं से विवाह किया। ऋंग ऋषि का विवाह अंगदेश के राजा रोमपाद की दत्तक पुत्री शान्ता से सम्पन्न हुआ जो कि वास्तव में दशरथ की पुत्री थीं। अप्सरा उर्वशी - साहित्य और पुराण में उर्वशी सौंदर्य की प्रतिमूर्ति रही है। स्वर्ग की इस अप्सरा की उत्पत्ति नारायण की जंघा से मानी जाती है। पद्मपुराण के अनुसार इनका जन्म कामदेव के उरु से हुआ था। श्रीमद्भागवत के अनुसार यह स्वर्ग की सर्वसुंदर अप्सरा थी। 67 - भगवान श्री राम - भगवान श्री राम के बाद कछवाहा (कछवाह) क्षत्रिय राजपूत राजवंश का इतिहास इस प्रकार भगवान श्री राम का जन्म ब्रह्माजी की 67वीँ पिढी मेँ और ब्रह्माजी की 68वीँ पिढी मेँ लव व कुश का जन्म हुआ। भगवान श्री राम के दो पुत्र थे – 01 - लव 02 - कुश रामायण कालीन महर्षि वाल्मिकी की महान धरा एवं माता सीता के पुत्र लव-कुश का जन्म स्थल कहे जाने वाला धार्मिक स्थल तुरतुरिया है। लव और कुश राम तथा सीता के जुड़वां बेटे थे। जब राम ने वानप्रस्थ लेने का निश्चय कर भरत का राज्याभिषेक करना चाहा तो भरत नहीं माने। अत: दक्षिण कोसल प्रदेश (छत्तीसगढ़) में कुश और उत्तर कोसल में लव का अभिषेक किया गया। - राम के काल में भी कोशल राज्य उत्तर कोशल और दक्षिण कोशल में विभाजित था। कालिदास के रघुवंश अनुसार राम ने अपने पुत्र लव को शरावती का और कुश को कुशावती का राज्य दिया था। शरावती को श्रावस्ती मानें तो निश्चय ही लव का राज्य उत्तर भारत में था और कुश का राज्य दक्षिण कोसल में। कुश की राजधानी कुशावती आज के बिलासपुर जिले में थी। कोसला को राम की माता कौशल्या की जन्म भूमि माना जाता है। - रघुवंश के अनुसार कुश को अयोध्या जाने के लिए विंध्याचल को पार करना पड़ता था इससे भी सिद्ध होता है कि उनका राज्य दक्षिण कोसल में ही था। राजा लव से राघव राजपूतों का जन्म हुआ जिनमें बडर्गुजर, जयास और सिकरवारों का वंश चला। इसकी दूसरी शाखा थी सिसोदिया राजपूत वंश की जिनमें बैछला (बैसला) और गैहलोत (गुहिल) वंश के राजा हुए। कुश से कुशवाह (कछवाह) राजपूतों का वंश चला। ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार लव ने - लाहौर की स्थापना की थी, जो वर्तमान में पाकिस्तान स्थित शहर लाहौर है। यहां के एक किले में लव का एक मंदिर भी बना हुआ है। लवपुरी को बाद में लौहपुरी कहा जाने लगा। दक्षिण-पूर्व एशियाई देश लाओस, थाई नगर लोबपुरी, दोनों ही उनके नाम पर रखे गए स्थान हैं। राम के दोनों पुत्रों लव और कुश में से कुश का वंश आगे बढा ।। शेष अगले अध्याय में लगातार.... #जय_क्षात्र_धर्म ⚔️💪🚩 #जय_श्री_राम 🙏🚩 #जय_श्री_कृष्णा 🙏🚩 क्षत्रिय धर्म युगे: युगे: ⚔️🚩 #क्षत्रिय #क्षत्रिय_विरासत #शूर्यवंशी_क्षत्रिय #चन्द्रवंशी_क्षत्रिय #शूर्यवंशी_क्षत्रिय_राजपूत #चन्द्रवंशी_क्षत्रिय_राजपूत #क्षत्रिय_यानि_राजपूत #राजपूत #राजपुताना #रघुकुल #ठाकुर #राठौड #भारतवर्षै #आर्यावर्तै - जय माॅं भवानी ⚔️🚩 जय एकलिंग महाराज ⚔️🚩

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