पिथौरागढ़ के किले
मदन चन्द्र भट्ट मानते हैं कि पिथौरागढ़ किले के संस्थापक कत्यूरी राजा राय पिथौरा का असली नाम प्रीतम देव था। इसी राजा ने पिथौरागढ़ नगर को बसाया था। एटकिंसन ने इन किलों का विल्कीगढ़( वर्तमान जी.जी.आई.सी) लन्दन फोर्ट (वर्तमान तहसील) के नाम से उल्लेख किया है। पाण्डे ने बताया है कि इसका जीर्णोद्वार लगभग 16वीं सदी ई. में पीरू गुसाई ने किया था। कौशल सक्सेना ने उत्तराखण्ड के दुर्ग में वर्णन किया कि पृथ्वी गुसाई ने (चन्द राजवंश) पिथौरागढ़ का किला बनवाया। दीप चौधरी ने इसे चन्द कालीन किला माना है। राम सिंह कहते हैं कि पिथौरागढ़ में गढ़ का ढाँचा गोरखों ने बनाया है। इससे पहले कोट था। किले की नींव व ढाँचा पूर्व मध्यकालीन रहा है। सोर घाटी में विभिन्न राजवंशों के सैन्य स्थल रहे हैं, जिसमें मुख्यतः कत्यूर,मल्ल, चन्द, बम, पाल, गोरखा एवं अंग्रेजों ने प्रशासन किया। इस घाटी के मध्य में टीले विद्यमान हैं, जिन्हें गढ़ी से बैठे-बैठे देख सकते थे। यह स्थल आत्मरक्षा के अतिरिक्त सामरिक दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपू्र्ण रहे हैं।
पिथौरागढ़ किला
पिथौरागढ़ में ‘खड़ीकोट’ (वर्तमान राजकीय बालिका इण्टर कालेज के स्थान पर) मेें तिमंजिला किला था, जिसे ‘गढ़ी’ कहते थे। अब भूमिसात इस किले के चारों ओर खाई बनी थी। किला कत्यूरी राजा पिथौरा(प्रीतम देव) ने 1398 ई. के लगभग बनवाया और उसी के नाम पर यह पिथौरागढ़ कहलाया। कुछ विद्वानों का यह भी मानना है कि पितरौटा के नाम से ही पिथौरागढ़ पड़ा है। परन्तु यह तर्कसंगत नहीं है। क्योकि यदि पितरौटा के नाम से पिथौरागढ़ पड़ा होता तो पितरौटा का नाम नहीं होता। इस तीन मंजिले किले के तीनों तलों मेें उसी प्रकार के छिद्र बनाए गए थे, जिस प्रकार कत्यूरी राजाओं के अन्य किलों मेें। यह तकनीकी कत्यूरी राजाओं की मानी जा सकती है। यह किला गोलाकार था। किले की माप(ल.x ऊं.x मो.) 60 परिधि x30 x 3 मीटर लगभग बताई जाती है।
गोरखा किला
पिथौरागढ़ का दूसरा किला, जिसमें वर्तमान समय में तहसील स्थित है, गोरखा किला कहा जाता है। समय-समय पर निर्माण किए जाने से किले की मौलिकता कुरुप हो गई है। इसमें सात परकोटे बने हैं। भौगोलिक क्षमता के अनुसार यहाँ अलग-अलग बुर्ज त्रिकोणीय, चतुषकोणीय एवं पंचकोणीय बनाए गए हैं। इस किले की परिधि 270. 24मी. की है। पूर्वी भाग में हल्की ढलका भूमि होने से इसी दिशा में प्रवेश द्वार बनाया गया है। प्रवेश द्वार की ल.1.76 और चौ.0.90 मीटर है। किले के मध्य में कुआँ था, जिसे बाद में बन्द कर दिया गया। वर्तमान समय में यहाँ पर पीपल का विशाल वृक्ष है। प्रवेश द्वार में दरवाजा सादी मोटी लकड़ी का बनाया गया है, जो वर्तमान समय में बन्द है। आपातकाल के समय सैनिकों के बाहर निकलने तथा रसद एवं पानी भरने हेतु उपयोग किया जाता होगा। दो पानी की बावड़ियाँ इस निकास द्वार के निकट लगभग 100-150 मीटर की दूरी पर विद्यमान हैं। प्रवेश द्वार के रक्षा प्राचीर में तीर, भाला व आग्नेय अस्त्र-शस्त्रों को फेंकने हेतु छिद्र बनवाए गए हैं। पूर्वोत्तर, उत्तर एवं दक्षिण में एक-एक बुर्ज में क्रमशः 5,8 एवं 4 छिद्र बने हैं। पश्चिम दिशा में तीन बुर्ज हैं, जिसमें क्रमशः7,7,10 छिद्र हैं। रक्षा प्राचीर में बने सभी छिद्रों में दो अथवा तीन स्थल की क्षमतानुसार छिद्र निर्मित किए गए हैं। किले में 152 छिद्र निर्मित हैं।इस किले के रक्षा प्राचीर की मोटाई 140 मी. ढलवा मो.1.50मी. है। सभी छिद्रों के आन्तरिक भाग की ल.58,चौ.29 सेमी के छिद्रों के मुख भाग को दो भागों में बाँटने वाली दीवार 17 x 25 सेमी है। प्रत्येक छिद्र के वाह्य भाग की ल. x चौ.16 x20सेमी. है। रक्षा प्राचीर की दीवार 140 सेमी. मोटी होने के साथ भौगोलिक क्षमता व आन्तरिक भाग में 60 सेमी. से 2 मी. तक मोटी बनाई गई है। चातुर्मास में इस क्षेत्र में मृदभाण्ड भी मिलते हैं। अंग्रेज शासन काल में इस किले के आन्तरिक भाग को विभाजित कर दिया। एक ओर प्रशासन दूसरी ओर निवास स्थान। किले के मुख्यद्वार में प्रथम विश्व युद्ध के समय यहाँ के 1005 लोगों के भाग लेने और 32 लोगों के जीवन देने का अभिलेख अंकित है।
भाटकोट
पिथौरागढ़ किले के पूर्वी भाग में ऊँचा कोट व उदयपुर कोट की तरह भाट कोट भी विद्यमान है। यहाँ भी दो ऊँचे टीले विद्यमान हैं। वर्तमान में प्रथम टीले का भू-कटाव होने के कारण मात्र प्रकृति प्रदत्त प्रस्तर खण्डों का ढाँचा रह गया है। इस कोट के उत्तरी भाग में लगभग 60 मीटर की गहराई पर वर्तमान बालिका इण्टर कॉलेज के पास एक बहुत बड़ा कुआँ है। इसी कुँए से नीचे लगभग 300 मीटर की दूरी में ‘रै धारा’ में प्रति सेकेण्ड.10 लीटर प्रवाह वाली जलधारा बहती है, जिसे ‘सिरपतया धारा’ कहते हैं। कोट में वर्षा काल में लगभग दूसरी सदी ई. के मृदभाण्ड भी मिलते हैं। इसके अतिरिक्त इस स्थल से लगभग 8-9वीं सदी ई. के किसी मन्दिर के लाल बालुकाश्म घट पल्लव युक्त प्रस्तर खण्ड भी मिले हैं। वर्तमान समय में यह लाल बालुकाश्म सुमेरु संग्रहालय में रखा गया है।
भाटकोट के पूर्वी भाग में जिलाधिकारी आवास विद्यमान है। यह टीला युक्त कोट है। इसके दो भागों को तराशकर बनाया है तथा दो भाग प्रकृति प्रदत्त हैं। इसमें मोर्चाबन्दी हेतु पूर्वी व पश्चिमी भाग में खाईयाँ बनी थी।
उदयपुर कोट
पिथौरागढ़ एंचोली शिलिंग मार्ग से लगभग 5 किमी. की दूरी में बुंगा गाँव के ऊपर उदयपुर कोट/ बम कोट है। कोट एक ऊँट की पीठ की तरह लम्बी डण्डी युक्त पहाड़ी पर विद्यमान है। इसमें दो-तीन भवनों की नींव अभी भी मौजूद है। कोट से लगभग 25 मीटर की दूरी में एक सुरंग बनी है। कहा जाता है कि यह सुरंग बुंगा गाँव तक है। बीच-बीच में प्रकाश हेतु जाले बने थे। अब यह सुरंग बन्द हो चुकी है। बुंगा गाँव में एक और ग्रामीण टीला युक्त कोट है। इस सुरंग का सम्बन्ध पानी का नौला व बुंगा गाँव से था।
ऊँचा कोट
पौड़गाँव के पूर्व में ऊँचाकोट विद्यमान है। यह कोट एक ओर से तराश कर निर्मित और तीन ओर से प्रकृति प्रदत्त है। आयताकार आकार के इस कोट में एक भवन की नींव और बीच मेें 8 x 5 x 4 फीट की चट्टान को काटकर एक जलाशय बनाया गया है। इस कोट की जड़ में देवी का मन्दिर है और यहीं पर दो तीन रॉक कट स्कल्पचर भी बने हैं।
बुंगा
सातशिलिंग व जाजर देवल के बीच में बुंगा गाँव विद्यमान है। इस गाँव के खेतों के मध्य एक छोटा टीला है, जिसे बुंगा कहते हैं। गाँव के सिरे में कोट है जिसे कोट कहते हैं।
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