रचना के जनक बाणभट्ट पीतांबर ने की थी, जिनके पूर्वज कुमायूं के मूल निवासी थे। कवि की कृति के आधार पर सन् 1305 ई0 हिमालय क्षेत्र में स्थितअस्कोट राजवंश के दो राज कुमार अलख देव और तिलक देव एक बड़ी सेना के साथ बस्ती जनपद के महुली स्थान पर आये। वे राज कुमार सूर्यवंशी क्षत्रिय थे। अलख देव जी महुली पर अपना राज्य स्थापित कर दुर्ग बनवाया, उनके छोटे भाई तिलक देव श्री अस्कोट वापस चले गये। कुछ समय उपरांत गौड़ वंश के राजा द्वारा महुली किले पर अधिकार कर लिया गया। किलें पर अधिकार कर रहे तत्कालीन महाराज बख्तावर पाल पाल और उनके पुत्र राज कुमार जसवंत पाल को महुली दुर्ग से बाहर कर दिया। परिणाम स्वरूपर राजकुमार जसवन्त पाल ने गौड़ राजा को युद्ध के लिए ललकारा घोर युद्ध हुआ गौड राजा युद्ध में गारा गया युवराज जसवन्त पाल ने महुली गढ़ को पुन: अपने अधिकार में कर लिया।
कृति का प्रथा दोहा-
महुली गढ़ लंका मयो रावण हवै गो गौड।
रघुवर हो जसवन्त ने दियो गर्व सब तोड।।
उक्त दोहे में कवि के हारा महुली गढ़ को लंका कहा गया, इस कारण महुली गढ़ के सूर्यवंशी नरेश यहां निवास करना उचित कविवर की प्रेरणा से महसों में अपनी राजधानी की स्थापना युद्ध विजयी जसवन्त पाल ने की।
कवि महाराज जरावन्त पाल के वीरत्व पूर्ण कार्य एव यह विजय' को व्यक्त करने से पूर्व तुति पूर्ण अभिव्यक्ति करता है 'में अपने गुरु गणेश जी की। एवं ब्रहमा, विष्णु । शंकर जी की स्तुति करता हूं कि तैतीशों करोड़ देवता महाराज जसवन्त जी गुण गान करे। महाराज जसवन्त शुभ-मुहुर्त की जानकारी कर ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा देकर राज्य विस्तार हेतु पूर्व दिशा की ओर आगे बढ़े, अपने साथ तीन कुशल बहादुर योद्धाओं । सैनिक समेत निर्भिक लडते हुए आगे बढ़ते गये। उस समय राजा की स्थिति ऐसी थी जैसे सूर्यवंश के प्रताप का डंका बज गया। शुभ दिन विचार कर नेवारी नगर के लिए अपने ऊपर चढाई का संदेश पाये इस कुसंदेश को सुनकर महाराज जसवंत की क्रोध अग्नि। जल उटी तुरन्त अपने छोटे भाई को बुलाये और उनसे कहे कि- अब कौन सा उपाय किया जाय शत्रु (गोड) सिर पर आ गया है। उसी समय मुगल पठान बोल उठे कि "हे नाथ! हे सैनिको! दोपहर (छ: घण्टे) के अन्दर गोरखपुर के राजा के पास चले जायें वहां से रोना की कुछ सहायता मिल जायेगी। महुली स्थान सुरक्षित करने के लिए शत्रु (गोड़ राजा) से लड़ाई कीजिए। महाराज आप शीघ्र ही फौज सवारी संसाधनसहित महुली चले आये और राजकोट को अन्दर अपनी फौज व समस्त बहादुर लोगों को बुलवाकर शत्रु (गोड) राजा से मुकाबला करने हेतु विचार विमर्श कर लिया जाय। इसी मध्य शत्रु की ओर से जो तत्कालीन किले के राज्याधिकारी बिलन्द पाल के अधिकार पत्र को ले लेने की बात कही गई और यह भी कहलवाया गया कि आप किले को छोडकर हैंसर चले जाये यहां रहने का अधिकार नहीं है। शत्रु पक्ष की चुनौती पूर्ण बात को सनकर महाराज जसवन्त पाल अन्दर से कोधाग्नि में तमक उठे उस रागय राजा जसवन्त पाल की सिथति ऐसी हुई गानों कोई विषेला रार्प फन फैला दिया हो, साथ ही साथ शत्रु की उक्त बात फन युक्त बाण जैसी भयंकर लगी। गौड़ राजा बख्तावर पाल को कहलवाता है कि मेरे शत्रु जसवन्त पाल को समझा दीजिए और कह दीजिए कि वे सिकटहा छोड़कर अपना जी लेकर यहां से भाग जावे क्योकि दक्षिण, पश्चिम के समस्त राजा मुझे राजा जानते है। कुत्सित जसवन्त राजा मुझसे लड़ने आ गया है। तिलोई राजा को लूट मार क वह धन दौलत लोक बाग सूबों में में दे दिये अमेठी गढ़ को धराशायी कर असवारी (बाहन) छीन लिया। फौज की दो टुकड़ी लगाकर सिकटहा को घेर लिया और गौड राजा कहा कि- "यदि जसवन्त को पकड़वा नहीं लेता तो हाथ में तलवार नहीं धारण करूंगा।'
गौड़ राजा के उक्त संकल्प को सुनकर बख्तावर पाल प्रति पक्षी (गौड़) राजा से कहे कि नाथ एक सुझाव सुनिये- जसवन्त आप का दुश्मन है उसे बागी समझ कर युद्ध कीजिए क्योंकि अपने हाथ से ही सेवक, अमीर आदि जनों को छिन्न भिन्न करता है और भाग निकला। इस भयंकर युद्ध स्थिति को रखकर गौड राजा का भाई अपने बड़े भाई राम सिंह को समझाया कि जसवन्त पाल तो गोरखपुर को निकल गया किन्तु उसके बाद अफरासेव खान अपने साथ वीर योद्धा नेवाती आदि को लेकर चढ़ाई कर दिया है सेना के साहस तोप बन्दूक की कार्यवाही को देखकर बड़े-बड़े अपना धैर्य गवां चुके है। जसवन्त पाल की युद्ध में धीव (नीच जाति) का राज्य जल जायेगा (सर्वनाश) हो जायेगा। मुझे निकाल दीजिए अब कोई वाहवाही नहीं चाहिए। युद्ध करने का संकेत किया जिस तरह से लंका छोडकर विभीषण राम जी के पास चला गया ठीक उसी प्रकार गौड राजा का भाई अपने भाई का संग छोड़कर महाराज जसवन्त के चरण दर्शन कर निर्भय हो गया।
कवि की कृति के आधार पर महाराज जरावन्त पाल की रौनिक कार्यवाही का दृश्य- गृह में योद्धाओं की उत्साह वर्धक ध्वनि गजने लागी नगाडे व बिगुल बजने लगे, कोधित होकर छोटे-बड़े राजा गौड राजा की फौज पर धावा बोल दिये साथ-साथ सा सैयद मुगल पठान और बड़े-बड़े चन्द्रवंशी वीर युद्ध करने के लिए चढ़ गये । बैंस ड्रगर (टीले पर चढकर) पवार सेनिक हाथ में हथियार लेकर दुश्मन की सेना का मारकाट करने लगे। युद्ध कुशल बखत सिंह और दया जो कि बड़े बहादुर योद्धा रहे दुशमन गोड की फौज को निर्धाक घर लिए। करना और मयाराम दो वीर रौनिक जैसे लंका के रणांगन में अंगद और हनुमानजी की जो भूगेिका थी वही गली में करना और गयाराग की थी। बड़े-बड़े मान्य बहादडुर बलवान सैनिकों की युद्धाग्नि में शत्रु गौड राजा की रोना वैसे ही नष्ट भष्ट होती रही जैसे दीपक के लव पर अपने आप पताग गिरकर स्वयं जाल जाते है यही स्थिति गोड पोज की हो रही थी। सुखानन्द गोहलौत, सुखी सुद्दी की तलवाए जाब निकलती है तो शत्रु पक्ष की रोना में गार काट की आवाज सुनाई पड़ने लगता है। च), हिरावन, बलशाली बागराऊ, तीन बराबर के जुझारू बलवान युद्ध भूमि की ओर निकल पड़ते है। रोज राज, बक्सर के झिलमिल और टिकोरा ये दो वीर सैनिक घोर युद्ध किये। सैनिकों के तीर-धनु, ढाल आदि को देखकर प्रति पक्षी (शत्रु के बड़े से बड़े योद्धा) अपना शैर्यवान रोनिक कोधावेश में तलवार प्रतिपक्षी पर जब धावा बोलते थे तो वे तलवार चलाने में कही को नहीं थे। एक से एक बहादुर सैनिक हाथ में अस्त्र शस्त्र लिए हुए निकल पड़े अचल सिंह बाद अपने अरबी मोड पर सवार होकर युद्ध भूमि में निकल पडे गोपाल भगवत दिग्गज पहाडा, और नली खान नसरत ये दोनों वीर सेना के श्रृंगार थे। इतनी बड़ी सैन्य शक्ति को देखकर गौड राजा (राम सिंह) अपने सैनिकों को ललकारते हुए कहता है कि- "अरे सैनिकों या तो जान दे दो अथवा पुत्र सहित जसवन्त को बांध ले।
बहादुर सैनिको मेरी लाज रक्खे जसवन्त व उनकी सेना का लेश मात्र भय न समझे युद्ध में आगे बढ़े। सम्पूर्ण सेना हुंकार भरती हुई एवं गर्जना करती हुई चढाई कर दे, ताकि गौड राज की युद्ध -खेल दुश्मन (राजा जसवन्त) एवं उनकी फौज देख सके। युद्ध मैदान में गोड राजा की सैन्य कार्यवाही प्रारम्भ हो गयी, चतुर्दिक युद्ध बाय बजने लगे हुंकार होने लगी ऐसे रहे युद्ध में गौड राजा राम सिंह। इनके रोना की चढायी को खबर महाराज जसवन्त पाल । इनकी फोज को हुई, परिणाम स्वरूप जसवन्त पाल की फौज भभक उठी, सम्पूर्ण वीर सैनिक ऊबल उठे अर्जुन और भीम जैसे नीर गौड राजा एवं सैनिकों को घेर लिए जिससे महाराज जसवन्त की फौज में चौगुना साहस बढ़ गया तत्काल महाराज जसवन्त पाल अपने सेनिकों में साहस भरते हुए बोल उते- "मेरे बहादुर सैनिको! दुश्मनों सैनिकों को तलवार की धार के नीचे कर दें, इनकी इज्जत खाक कर दें।" महाराज जसवन्त की सैन्य मुख पर युद्ध का रंग चढ गया और अन्दर से लाज लग गई। सैनिकों के चीरत्व भाव को देखकर कवि कह उठता है कि श्री जसवन्त के प्रताप का मुकाबला कोन कर सकता है? अर्थात् कोई नहीं इनका युद्ध में कोई नहीं जीत सकता।
छन्द
रघवंश नन्दन सूर्यवंश हवे हो। तो राउर गरुरी गम में मिलेहो।।
परतुत काव्यांश में बहादुर योद्धा फतेह पाल अपने राजा जसवन्त पाल को उनकी वीरता का अवबोध कराते हुए कहता है - "हे महाराज! आ। यदि सूर्यवंश रघुबरा नन्दन हो, तो उस गोड राजा की गरुरी (अभिमान) को मिटा देंगे। आप विजयी राजा के राजा हो, गद्दी नसीन हो, इसी वीरत्व भाव से क्रोधावेश में बहादुर ते पालो युद्ध स्थला में चढ़ाई की तथा पूरी फो। तुर्की, ताजी घोड़ो पर रावार होकर निकल पड़ी, बरगाह के बहादुर रोनिक हाथ में बरछी लिए ऊपर उठाये हुए युद्ध भूमि की तरफ आगे बढ़ रहे है इस रोना के साथ अपनी सेना सुराज्जित कर तथा पीर कुवर लोग एवं जो जहा । अपने यहादुर रजा की आन में व फौज के अंगार केसरी सिंह अपने संग बड़े से बडे घराने के वीरों को साथ लिए हुए युद्ध भूगि में ऊतर पडे। तखत पाल व सुखिपाल जो बड़े बलशाली योद्धा अपनी सवारी छोडकर कोधावेश में तलवार भांजने लगता है। अनेक बहादुर बलवान धैर्यवान उच्च शीय, गम्भीर, पान खाने के शाकीन जो गेया कहलाते है जिनके अन्दर श को तहरा--नहस कर डालने का भाव प्रकट हो रहा है। हंसते से उमडते हुए युद्ध भूमि की तरफ बढ़ रहे है। इस स्थिति को देखकर शत्रु (गोड) सेना की आवाज बन्द हो जाती है। महाराज जसवन्त पाल की सैन्य कम में बाबू दिली पाल, अजमेर पाल जो बडे साहसिक है, अपनी तलवार रो नर मुंड का समूह बिछा देत है। मीर सैयद रहीम खां जो पठान जाति के सैनिक चढाई कर देते है। शेख, सैयद ऐसे बहादुर रहे कि संसार इन लडाकुओं का लोहा गानता है। राउत विराम्भर महा बली गाजी मोर्चा पर अपनी बाजी लगा दिये। युद्ध भूमि में विशेष रूप से लडने वाले क्षत्रिय लोग निकल पड़े। जसवन्त पाल के पक्ष में विविध प्रकार के लडाकुओं क तर्णन करते हुए कवि कहता है कि “लडाई लड़ने के लिए इतने बाबू या निकल पर कि उनकी गणना कहां तक की जाय चौदह कोस के परिक्षेत्र में श्री जसवन्त पाल के समान वीर कोई नहीं है। जिनकी रोना में एक से एक गहाबली युद्ध है।” शत्रु पक्ष (गौड़) का मंत्री बुद्धि हन है जो कि श्री जसवन्त पाल जी से उलझे। जब दोनों तरफ की रोना युद्ध के लिए निकलती है तो प्रतिपक्ष (गौड़) में अशुभसूचक संकेत दिखने लगते है, प्रतिपक्षी (गोड) सेना के बाये तरफ से घृणास्पद शब्द निकलते है एवं दायें तरफ से कौवे बोलने लगते है ।
गौड राजा की रोना जिसमें एक से एक महाबली योद्धा है उत्साहित होकर युद्ध के लिए निकल पड़ी। मुकाबले में महाबली जरान्त पाल की फौज नगाडे आदि युद्ध बाह्य के साथ निकल पड़ी तुरन्त ये सेनाएं एक दूसरे पर गार-काट करने लगी। सूर्यवंश के महान योद्धा अपने सवारी से उतर कर युद्ध-भूमि गे अदम्य साहस के साथ उतर पड़े जो अपने हाथों में तलवार भाला देखकर, गौड राजा की रोगों में गाय का कोलाहल होने लगा इसी मध्य वीर जसवन्त जरावन्त पाल हाथ में धनुष-बाण लिए हुए ए। सैनिक तलवार एवं लोह निर्मित चकाकर शरत्र लिया हुए निकल पड़े | महाराज जसवंत पाल एवं उनके बहादुर लड़ाकुओं को देखकर, गौड राजा भभक पड़ती है और अपनी तलवार घुमाने फिराने लगता है| उस समय की स्थिति ऐसी थी जैसे सिंह हाथियों के समूह पर प्रहार करें जिसका कोई असर पड़ने वाला नहीं था| प्रतिपक्षी (गौड) के एक से एक बलशाली युद्ध उठते है और कोधातुर होकर बार-बार बरछी लहराते है| जिसका कोई असर महाबली जसवन्त लाल व सैनिको पर नहीं पड़ता | प्रति पक्षी (गौड) सेना के कितने सूरवीर घोडियो पर लटककर अपनी लाज बचाने में नाकाम झपटते है| जैसे लका में राम-रावण युद्ध में जो भूमिका अगंद की थी, वहीँ भूमिका महुली में जसवन्त पाल और गौड सेना के समक्ष अपना अटल पावं जमा दिये |बहादुर सैनिक फतेपाल शत्रु (गौड) कि सेना के मध्य में टूट पड़े जैसे कि हाथियों के समूह में सिंह | महाराज जसवन्त के तलवार वैसे चलाते है जैसे आज पक्षी कुलंग (गुर्ग) पर झपटता है | तीर, तोप, गोलिया तड़ा-तड़ा चली है जिसे देखकर गौड राजा के सैनिको की अहंकारी जुबान लुप्ट हो गई|अपने को बलशाली समझने वाला गौउ राजा युद्ध में लड़कर पराजय का अनुभव क्र लिया | इसी स्थिति को देखकर एव समझ कर बहादुर जसवन्त [पाल हंसती सी मंगल गीत गाने लगी, भूत, बैताल ख़ुशी में हसंते और डमरू बजाने लगे कि अब हमे भरपूर खाने को आहार (मांस) मिलेगा | ऐसा था महाप्रतापी जसवन्त लाल एवं इनके सैनिक का सैन्य कार्य | गौड राजा एवं उसकी बची हुई सेना के लिए रात्रि दीवाली की रात्रि जैसी बहुत बड़ी लागी (दुःख की रात युग के समान हो जाती है)| महाराज जसवन्त पाल कि विजय पत्र जारी हो गया | महाबली लाल जसवन्त देवो के देव सारे बंदी सैनिक सामंत आदि मुक्त हो गये और राजा जसवंत पाल का स्वागत सम्मान करने लगे |
काव्यांश दोहा-
कोप्यों सब सरुबाइ राम सिहे के घाक सों|जुझयो जाइ श्री जसवन्त प्रताप कर |
सरजूपार- ( बस्ती गोरखपुर आदि) क्षेत्रो के पक्ष-विपक्ष के सब लोग गौड राजा रामसिंह के अन्याय एवं कार्य व् प्रभाव से कुपित हो गये और मुखर हो गये कि- लंका में रावण की तरह सबको राम जैसे श्री जसवन्त से जुझावा दिया | महुली में गौड राजा राम सिंह और सुर्यवंश नरेश कि स्थ्ति लंका में रावण और श्री राम जी की युद्ध जैसे थी| महाराज जसवन्त जी ने राम के समान अहंकारी रावण जैसे गौड राजा के मुख में लगी वहीँ गौड राजा (रामसिंह) जसवन्त पाल कि गोली से महुली कि युद्ध भूमि में मारा जाता है जिसकी खबर सर्वत्र फ़ैल जाति है| तत्पश्चात महाराज जसवन्त पाल के प्रति कवि की उकित-रघुवंश नंदन संसार में वन्दनीय शत्रु के प्राण को हराने वाले फण युक्त बाण कांख में दावे खडत्र है | समर भूमि में महाराज जसवन्त हके हाथ में धनुष वैसे लग रहा है जैसे बधिक के हाथ में सर्प का बच्चा शोभा देता है | महुली कि युद्ध भूमि के मध्य एक से एक महाबली सेना गौड ( राम सिंह) सहित मारी गई | जैसे लोहे कि धधकती खान से एक एक चिनगारिया उठती है पुन: उसी में गिरकर समाप्त हो जाती है ठीक उस तरह महाराज जसवन्त की युध्दाग्नी में गौड सैन्य रूपी पतंगे दौड-दौड क्र युक्त करने तथा गुलामी युक्त करने वाले सबको शांति प्रदान करने वाले प्रभु स्वं महुली के धनी सरजू पार (बस्ती गोरखपुर आदि) का जय करने वाले महाराज जसवन्त पाल की जय तथा महाराज जी पिता श्री बखतावर पाल रूपी गुलाब पुष्प का उदय वाले सुर्यवंश महुली राजा जसवन्त पाल के समान राजा कोई नहीं |
महुली राज्य के सम्बन्ध में 'जंगनामा' की रचना तीन सौ साल पहले बस्ती जनपद के महसों के निवासी पं0 ब्रह्मभट्ट पीताम्बर ने की थी। उनके पूर्वज श्री राम कुमायूँ से महसों के सूर्यवंशी राजा के साथ आये थे। पीताम्बर एक श्रेष्ठ कवि थे उनकी रचना पढने से पता चलता है कि वे अत्यन्त प्रौढ ब्रजभाषा मिश्रित अवधी भाषा में विभिन्न छन्दों में काव्यरचना करने में समर्थ थे |
सन् १३०५ ई० में हिमालय में स्थित (कुमायूँ) आस्कोट राजवंश के दो राजकुमार अलख देव और तिलक देव अपने साथ एक बड़ी सेना लेकर बस्ती जनपद के महुली स्थान में आये। वे सूर्यवंशी क्षत्रिय थे। अलख देव ने महुली में अपना राज्य स्थापित कर दुर्ग बनवाया और उनके छोटे भाई तिलक देव आस्कोट वापस चले गये। महुली पर गौड़ वंश के राजा ने चढाई की। उसने किले पर अधिकार कर तत्कालीन नरेश बख्तावर पाल और उनके पुत्र राजकुमार जसवन्त पाल को महुली दुर्ग से बाहर कर दिया। राजकुमार जसवन्त पाल ने गौड़ राजा को युद्ध के लिये ललकारा, भयंकर घमासान युद्ध हुआ। उसमें गौड़ राजा मारा गया और युवराज जसवन्त पाल ने महुली गढ़ को अपने अधिकार में कर लिया । इसी युद्ध का वर्णन कवि पीताम्बर ने 'जंगनामा' में किया है। इस रचना का प्रथम दोहा है-
महुली गढ़ लंका भयो रावण है गो गौड़।
रघुबर है जसवन्त ने दियो गर्व सब तोड़ ।।
इस दोहे में महुली गढ़ को लंका कहा गया है, इसलिये महुली गढ़ के सूर्यवंशी नरेश ने निवास करना ठीक न समझ कर कविवर की प्रेरणा से महसों में अपनी राजधानी स्थापित की । यह कार्य युद्धविजयी महाराज जसवन्त पाल द्वारा सम्पन्न हुआ। यह घटना प्रायः तीन सौ साल पहले घटित कही जा सकती है।
जंगनामा की (यथोपलब्ध' प्रतिलिपि)
[प्रतिलिपि]
जगनामा महुली राज का- जिस समय गौड़ राजा ने चढ़ाई की थी और यहाँ परास्त हुआ था। महाराज जसवंत पाल के हाथों उसी समय महसों गद्दी स्थापित हुई थी।
सुमिरो गुरू गणेश को ब्रह्मा विशुन महेश । तैंतीस कोटि देवता गावें श्री जसवंत नरेंश।।
श्री जसवंत नरेश गौन पूरब कहँ कीन्हा। घरी महति ठानि दान विप्रन कहँ दीन्हा।।
तीन सुभट भट संग लड़त नहिं मानत संका। सूर्य वंश प्रताप चढ्यौ दै जस को डंका।।
नगर नेवारी जाय के सुभ दिन कियौ पयान । धरी दोय के बीज में लियौ सिकटहै आन।।
लियौ सिकटहै आन खबरि हरिकारन पाई। रामसिंह महाराज फौज सिर ऊपर आई ।।
उठि राजा रिसिआइ अनुज अचलेस बुलावा। कीजै कौन उपाय शत्रु सिर ऊपर आवा।।
बोले मोगल पठान नाथ एक सुनहु समाजा। पहर दोय के बीच जाहु गोरखपुर राजा।।
गोरखपुर में जाइ फौज कछु मद्द पाई । महुली थाना राखि शत्रु से करहु लड़ाई ।।
भै राजा असवार बेगि महुली चलि आयें। बैठि कोट के बीच सुभट सब लोग बुलाये ।।
बोले बखत बिलन्द पाल का कागज लीजै। हैसर चलिये आप कोट खाली करि दीजै।।
सुनि महीप को बचन मंत्र जनु बिसहर जागा। सूर्य वंश के बोल कहर कैवर सम लागा।।
सुनि बखतावर पाल शत्रु से कह समुझाई । बेगि सिकटहै छाडि जीव लै जाइ पराई।।
दच्छिन पच्छिम भूप सकल मोहि जानत राजा | भुवाल जसवंत आय मेरे मुख बाजा।।
राज तिलोई लूटमार सूबन कहँ दीन्हा। गढ़ अम्मेठी मार खड़ी असवारी लीन्हा।।
दो फौजें करि कै परो वही सिकटहै घेरि। जौ न धरौं जसवंत को तो न गहौं समसेर ।।
छन्द
बोले बखतावर पाल नाथ एक सुनहु सलाई।है बागी जसवंत जानि जन करहु लड़ाई।।
हस्तन कुली अमीर जानि जन बिछत कीन्हा ।आधी फौज जुटाव भागि गोरखपुर लीन्हा।।
और फजुल्लह खान संग ले बल्लभ राजा। आठ दिवस मै मार जीव आपन लै भाजा।।
ता ऊपर अफरासेव खान संग लिये नेवाती वीर। बढ़त अनी चटकत तुपक नेक न धरिये धीर ।।
सह पावक जरि धीव राज वैसे जरि जाई। मोहू देहू निकारि वाहवाही को भाई।।
लंका छाड़ि विभीषणा जस गयो राम के पास । देखि चरणा जसवंत को छूटि गई सब त्रास।।
बजी बम्ब घनघोर नीसान बाजा। चढ़े कोथ रन पै बली राव राजा ।।
चढ सेख सैयद औ मोगल पठाना। चढ़े सोमवंशी महा मरदाना।।
चढ़े बैंस डूगर बखतु पँवारा । लिये सांग करै में करै मार मारा ।।
करी दया औ बखत सिंह बंका। घेरी फौज भीतर करै नाहिं संका।।
करना ओ मया राम दो बीर राजें। जैसे लंक अंगद हनुमान गाजै ।।
श्रीमान् अनंता अचल वीर जंगी । उपरै टूटि रन पै ज्यों दीपक पतंगी।।
सुखानन्द गोहलौत सुखी सुदीक्की। जहां तेग चमकै करै मार बक्की।।
चन्दन हिरावन बली बागराऊ। चले वीर तीनों बराबर जुझाऊ।।
रोज राज बक्सर झिलिम ओ टिकोरा। दो वीर बनि के किये अति जोरा।।
तीर बान कम्मान ढालै ढलक्कै। देखत सूर सम्मुख है गाढ़े बलक्कै ।।
चढे कोय रन को महाधीर पेले । लिये तेग कर में किते खेल खेले।।
भये सूर सनमुख लिये कर जुनब्बी । अचल सिंह बाबू कुदावै अरब्बी।।
गोपाल भगवत दिग्गज पहाड़ा। वली खान नसरत वो दल को सिंगारा ।।
कहै राम राजा कितो जीव दीजै। की सुत सहित जसवंत बॉधि लीजै।।
धरी लाज मन में करी नाहि त्रासा। चढे नादनी गौड देखै तमासा।।
बजत बम्ब चहुँ ओर सों राम सिंह नर धीर। खबरिलाल जसवंत को बभकि उठे सब वीर ।।
बभकि उठे सब वीर भीम अर्जुन ते गाढे। देखि गौड़ को गोल चित्त चौगुन है बाढ़े ।।
कहै लाल जसवंत वचन एकै मै भाखों। गहि कृपान के बीच शत्रु की खाक न राखों।।
लाल लाज मन में धरी चढ़ी नूर मुख रंग। श्री जसवंत प्रताप सों को अस जीतै जंग ।।
छन्द
रघुवंसनन्दन सूर्यवंश है हो । तो राउर गरूरी गरद में मिलैहो ।।
बोले फतहपाल सिवपूत पत्ता। होय हो तखत के तखत तखत्ता।।
बनी ठाठ है वर तुरकी ओ ताजी । चढे कोप रन पै फतेपाल गाजी।।
चढ़े वीर वरगाह कर लै बरच्छी । है नै कोपि कै फूटि निकसै तिरच्छी ।।
चढ़े लाल गुरूदत्त अरिदल दहैया। चढ़े लाल संग्राम सो वीर भैया ।।
चढ़े अचल गैजर जगरनाथ गाजी। चढ़े वीर कुँवर सबै फौज साजी।।
चढे केसरी सिंह दल को सिंगारा। लियै संग सावंत सबै सरदारा।।
तखत पाल खुसिपाल दो वीर भारी । तरी से उतरि के तमकि तेग मारी ।।
बहादुर बली धीर सावंत गंभीरा । तहैनै तेग जापर हँसै खय बीरा।।
गजराज लच्छन जो भैया कहावै। उमड़ि अनी देखे तो बागे उठावै ।।
बाबू दिली पाल अजमेर पाला । जबै बाग तोलै करे मुडंमाला।।
चढे मीर सैयद रहीम खाँ पठाना। चढे सेख सैयद जगत लोह जाना।
राउत बिसम्भर महावीर गाजी। बढ़े मोर्चा अपनी राख बाजी।।
चढे कौम छतिरी जो रन के लडैया। कहाँ लौ गनौं वीर बाबू ओ भैया।।
बरनौ चौदह कोस को श्री जसवंत को वीर । एक से एक सावत है महा महा रणधीर।।
मंत्री मति को हीन अरूझै श्री जसवंत सो वोलन लागे छीन वायें काग अरू दाहिने ।।
उमडी फौजे गौड़ की लियो सुभट अनमोल । बजत बम्ब जसवंत की जुटी दूहूँ ओर गोल ।।
जुटी गोल दोऊ भई धारधारा। लगे लाल जसवत सो हनि मारा ।।
सूर्यवंश गाजी महावीर गाढ़े । तुरी से उतरि कै भये भूमि ठाढे ।।
चमक बरच्छी लिये हाथ भल्ला । हुये सूर सनमुख कियै गौड हल्ला।।
सौचौ सार सौ सार चहु चक्र जाना। उमड़े लाल जसवंत कर सौ कमाना ।।
भभकै बली गौड़ तरवार झारै। जैसे सिंह गजजुत्थ पै घाव मारै।।
अनंतू घना वीर जोधा कहावै। उटै रूठे फिर फिर बरच्छी लगावै।।
बली लाल जसवंत के गहै बागा। हनै तेग जापर रहै नाहिं लागा ।।
केते सूर सन्मुख तुरी पै लटक्कै। मरे लाज मारे अनी पै झपक्कै ।।
जस लंक अंगद दुहू पाव रोपा। तैसे जुद्ध कारन फतेपाल कोपा।।
फतेपाल गाजी महा जुत्थ मेले। जैसे गज रन पर जुटे हैं बघेले ।।
पहिलै हय तै उतरि कै भया श्री गजराज। तमगि तेग अरि पै हन्यो ज्यों कुलंग पै बाज ।।
चली तीर तर तर तुपक और गोली ।गयी भूलि के फारसी मोगल बोली ।।
बली गौड़ मैदान लरि कै अधाने। भये लाल जसवंत के मंदु बाने ।।
हँसी जोगिनी चारू मंगल जो गावै । हँसै भूत बैताल डमरू बजावै ।।
भई गौड देवसै भई रात भारी । लई जीतपत्री बली गौड मारी ।।
बली लाल जसवंत देवन के देवा। छुटी बन्द सबकी करै भूप सेवा।।
दोहा
कोप्यो सब सरूवाइ रामसिंह के धाक सों। जूझयो महुली जाइ श्री जसवंत प्रताप कर।।
महुली गढ़ लंका भयो रावण है गो गौड़। रघुवर है जसवंत ने दियो गर्व सब तोड़।।
गोली लाग्यौ काल की गयौ गौड़ मुख मोर फतेलाल जसवंत को खबर भई चहुँ ओर ।।
रघुवंसनन्दन जगतबन्दन चापि के कैवर लियौ ।जुटे जु सायक अरुन धायक प्रान शत्रुन के लियौ।
जसवंत हाथ कमान सोहत बधिक छौना व्याल के । रहि खेत मध्य रनभूमि ऊपर सुभट राजा राम के
जोरि लोह खान निसरत खेल चाँचरि खेलही। जैसे पतंगी अग्नि भीतर रामसिंह नृप धाइया।।
बाबू दलीप दिग्गज कहर के बरखाइया। गयी छूट दस्तक छूटि पुस्तक हाथ मल हाकिम रहे ।।
प्रभु अंस गाजी जयति जय सरूवार जय महुली धनी ।बख्तावर पाल को तब बरी कूजा को ऊयो दान।।
महुली राजा और को सूरजवंश समान।।
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