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उत्तराखंड के न्याय देवता ग्वेलज्यू के जन्म से सम्बंधित विभिन्न जानकारियां जनश्रुतियां एवं जागर कथाएं

 दीप बोरा जी को बहुत-बहुत शुभकामनाएं आप हमेशा  उत्तराखंड के ऐतिहासिक धरोहरों की खोज तथा उसकी जानकारी दैनिक जागरण के माध्यम से पूरे पाठकों तक पहुंचाते हैं आपका यह प्रयास बहुत सराहनीय है nepal ukku उक्कू पाल वंश की शाखा जो असकोट की वरिष्ठ शाखा है, और  वहां से इनकी कुछ शाखाएं नेपाल में अन्यत्र भी गई, जैसे निसिल,देथला, टकना आदि है और उनकी सीनियर शाखा डोटी के रैका मल्ला राजवंश है, उत्तराखंड के न्याय देवता ग्वेलज्यू के जन्म से सम्बंधित विभिन्न जानकारियां जनश्रुतियां एवं जागर कथाएं  इतनी विविधताओं को लिए हुए हैं कि ग्वेल देवता की वास्तविक जन्मभूमि निर्धारित करना आज भी बहुत कठिन है। न्याय देवता की जन्मभूमि धूमाकोट में है,चम्पावत में है या फिर नेपाल में?  इस सम्बंध में भिन्न भिन्न लोक मान्यताएं प्रचलित हैं। कहीं ग्वेल देवता को ग्वालियर कोट चम्पावत में राजा झालराई का पुत्र कहा गया है तो किसी जागर कथा में उन्हें नेपाल के हालराई का पुत्र बताया जाता है। विभिन्न क्षेत्रों में प्रचलित पारम्परिक जागर कथाओं और लोकश्रुतियों में भी न्यायदेवता ग्वेल की जन्मभूमि के बारे में अनिश्चयत...

पिथौरागढ़ के किले

 पिथौरागढ़ के किले मदन चन्द्र भट्ट मानते हैं कि पिथौरागढ़ किले के संस्थापक कत्यूरी राजा राय पिथौरा का असली नाम प्रीतम देव था। इसी राजा ने पिथौरागढ़ नगर को बसाया था। एटकिंसन ने इन किलों का विल्कीगढ़( वर्तमान जी.जी.आई.सी) लन्दन फोर्ट (वर्तमान तहसील) के नाम से उल्लेख किया है। पाण्डे ने बताया है कि इसका जीर्णोद्वार लगभग 16वीं सदी ई. में पीरू गुसाई ने किया था। कौशल सक्सेना ने उत्तराखण्ड के दुर्ग में वर्णन किया कि पृथ्वी गुसाई ने (चन्द राजवंश) पिथौरागढ़ का किला बनवाया। दीप चौधरी ने इसे चन्द कालीन किला माना है। राम सिंह कहते हैं कि पिथौरागढ़ में गढ़ का ढाँचा गोरखों ने बनाया है। इससे पहले कोट था। किले की नींव व ढाँचा पूर्व मध्यकालीन रहा है। सोर घाटी में विभिन्न राजवंशों के सैन्य स्थल रहे हैं, जिसमें मुख्यतः कत्यूर,मल्ल, चन्द, बम, पाल, गोरखा एवं अंग्रेजों ने प्रशासन किया। इस घाटी के मध्य में टीले विद्यमान हैं, जिन्हें गढ़ी से बैठे-बैठे देख सकते थे। यह स्थल आत्मरक्षा के अतिरिक्त सामरिक दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपू्र्ण रहे हैं। पिथौरागढ़ किला पिथौरागढ़ में ‘खड़ीकोट’ (वर्तमान राजकीय बालिका इण्ट...

ललितशूरदेव का 21वें राज्य वर्ष का पाण्डुकेश्वर ताम्रपत्र (13 वीं से 24 वीं पंक्ति)-

  उत्तराखण्ड के उत्तरकाशी से चम्पावत तक विस्तृत भू-भाग पर स्थित प्राचीन मंदिरों से अनेक अभिलेख प्राप्त हुए हैं, जिनमें शिलालेख, स्तम्भलेख, त्रिशूललेख और ताम्रपत्र महत्वपूर्ण हैं। सैकड़ों की संख्या में प्राप्त ताम्र धातु के आयताकार और वृत्ताकार फलक पर उत्कीर्ण लेख ही उत्तराखण्ड के प्राचीन इतिहास के महत्वपूर्ण स्रोत हैं। विभिन्न राजवंशों द्वारा समय-समय पर निर्गत ताम्रपत्रों से ही उत्तराखण्ड के प्राचीन इतिहास को क्रमबद्धता से संकलित किया गया। ये ताम्र फलक मध्य हिमालय के मंदिरों और गृहों से प्राप्त हुए। उत्तरकाशी का प्राचीन नाम बाड़ाहाट था, जहाँ के महादेव मंदिर प्रांगण में स्थापित त्रिशूल पर लेख उत्कीर्ण है। इसी प्रकार एक अन्य त्रिशूल लेख चमोली जनपद के रुद्रनाथ मंदिर (गोपेश्वर) से प्राप्त हुआ है। पंचकेदारों में से एक रुद्रनाथ के अतिरिक्त चमोली जनपद में अनेक प्राचीन तीर्थ स्थल हैं, जिनमें पाण्डुकेश्वर नामक स्थल अलकनंदा के दायें तट पर स्थित है, जहाँ से कार्तिकेयपुर एवं सुभिक्षुपुर उद्घोष वाले ताम्रपत्र प्राप्त हुए हैं। इसलिए इन ताम्रपत्रों को पाण्डुकेश्वर ताम्रपत्र भी कहते हैं।  ...