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कार्तिकेयपुर राजवंश का स्वर्णिम इतिहास

 [07/07, 18:05] Akhilesh Bahadur Pal: जोशीमठ का नरसिंह मंदिर बसंत देव ने ही बनवाया थे। इस कत्यूरी राजवंश का सबसे प्रतापी राजा इष्टदेवगण का पुत्र राजा ललितसुर थे। जिसके बारे में कहा गया हैं कि गरुण भद्र की उपाधि दी गई थी। तथा ये भगवान विष्णु के अवतार (बराहअवतार) के समान बताया जाता हैं। ललितसुर का पुत्र ही भूदेव था. जिन्होंने बैजनाथ मंदिर का निर्माण करवाया

[07/07, 18:05] Akhilesh Bahadur Pal: सोमचंद के चंपावत सिंहासनारूढ़ वर्ष को विद्वानों ने सन् 700 ई. या सातवीं शताब्दी का अंतिम वर्ष निर्धारित किया। सातवीं शताब्दी का इतिहास कन्नौज और उत्तराखण्ड के सन्दर्भ में समझना आवश्यक है। इस शताब्दी में हर्ष के नेतृत्व में कन्नौज उत्तर भारत का सत्ता केन्द्र बन चुका था और कन्नौज से सुदूर उत्तर में ब्रह्मपुर राज्य अस्तित्व में था, जहाँ हर्ष काल में चीनी यात्री ह्वैनसांग ने यात्रा की थी। भारत में 14 वर्ष की यात्रावधि में ह्वैनसांग पो-लो-कि-मो जनपद में भी गया था। पो-लो-कि-मो को जूलियन और कनिंघम ने संस्कृत के ब्रह्मपुर का भाषान्तर माना है। कनिंघम ने ब्रह्मपुर की पहचान आज के चौखुटिया (अल्मोड़ा) से की, जिसकी पुष्टि तालेश्वर ताम्रपत्र करते हैं। हर्ष की मृत्यु सन् 647 ई. में हुई और योग्य उत्तराधिकारी के अभाव में कन्नौज सहित उत्तराखण्ड की शासन व्यवस्था स्थानीय क्षत्रपों के हाथों में चली गई

[07/07, 18:05] Akhilesh Bahadur Pal: सोमचंद कन्नौज के शासक का भाई और बदरीनाथ की यात्रा पर थे। यात्रा के दौरान वह ब्रह्मदेव से मिले और वृद्ध ब्रह्मदेव उसके व्यवहार से इतना प्रसन्न हुए कि उसने सोमचंद को कुमाऊँ में रहने का निमंत्रण दिया। सोमचंद सहमत हो गया और ब्रह्मदेव ने उससे अपनी कन्या का विवाह कर दिया तथा दहेज में चंपावत में पन्द्रह बीसी जमीन तथा तराई और भाबर में भी काफी क्षेत्र पर अधिकार दे दिया।’’

[07/07, 18:05] Akhilesh Bahadur Pal: बसंत देव कन्नौज के राजा यशोवर्मन के सामंत थे. यशोवर्मन मौखरी वंश से थे, ऐसा कहा जाता है कि यशोवर्मन ने उत्तराखंड जीतने के बाद बसंतदेव को उसका सामंत बना दिया था. इसके बाद बसंतदेव पुनः एक स्वतंत्र राज्य की घोषणा कर देते हैं. इसे ही पुनः कत्यूरी शासन का उदय माना जाता है.

[07/07, 18:05] Akhilesh Bahadur Pal: ललितादित्य मुक्तापीड कश्मीर के कार्कोट वंश का महान शासक था, जिसने सन् 724 ई. से 760 ई. तक कश्मीर पर शासन किया था। कश्मीर घाटी में स्थित अनंतनाग का मार्तण्ड मंदिर (सूर्य मंदिर) उसी के द्वारा बनवाया गया था। कल्हण के अनुसार उसने कन्नौज के अतिरिक्त कलिंग, कर्नाटक, काठियावाड़ अवन्ति और उत्तर-पश्चिमी के पहाड़ी प्रदेशों को भी विजित किया था। सन् 740 के आस पास ललितादित्य ने यशोवर्मन को पराजित कर कन्नौज के स्थान पर कश्मीर को उत्तर भारत की राजसत्ता का केन्द्र बना दिया था

[07/07, 18:06] Akhilesh Bahadur Pal: भवभूति संस्कृत का महान नाटककार था, जिसने मालतीमाधव, उत्तररामचरित तथा महावीरचरित नामक नाटकों की रचना की थी। मालतीमाधव में माधव और मालती की प्रणय कथा और उत्तररामचरित में रामायण का उत्तरकाण्ड वर्णित है। जबकि महावीरचरित में राम के विवाह से राज्याभिषेक तक की कथा वर्णित है।

[07/07, 18:06] Akhilesh Bahadur Pal: वाक्पति और भवभूति कन्नौज नरेश यशोवर्मन के दरबारी कवि थे। वाक्पति ने प्राकृत भाष में ‘गौडवहो’ नामक काव्य की रचना की, जो यशोवर्मन के इतिहास का सर्वप्रमुख स्रोत है। गौडवहो के अनुसार यशोवर्मन ने मगध, बंगदेश, हिमालय क्षेत्र, पश्चिमी समुद्री क्षेत्र, मरुदेश और विन्ध्य क्षेत्र को विजित किया था।

[07/07, 18:06] Akhilesh Bahadur Pal: अस्कोट के पाल और डोटी के मल्ल भी  कत्यूरी वंशज  हैं इन दोनों राजवंशों की प्रकाशित वंशावली शालिवाहन से त्रिलोकपालदेव तक लगभग एक जैसी है। लेकिन कत्यूरी राजा त्रिलोकपालदेव तक पाल-वंशावली में मल्ल-वंशावली के सापेक्ष 12 नाम अतिरिक्त हैं। इन दोनों वंशावली से स्पष्ट होता है कि त्रिलोकपालदेव के पश्चात कत्यूरी वंश पाल और मल्ल में विभाजित हो गया था।

[07/07, 18:06] Akhilesh Bahadur Pal: बागेश्वर शिलालेख और कार्तिकेयपुर से निर्गत ताम्रपत्रों में उल्लेखित शब्द ‘कुशली’ से स्पष्ट होता है कि कत्यूर घाटी पर शासन करने वाले मसन्तनदेव, खर्परदेव, ललितशूरदेव और पद्मटदेव आदि शासक भिन्न-भिन्न राजवंश से संबद्ध थे। कुछ विद्वान बागेश्वर शिलालेख के मसन्तनदेव को आसन्तिदेव और बासन्तिदेव से संबद्ध करते हैं, जो कत्यूर घाटी के शासक थे।

[07/07, 18:07] Akhilesh Bahadur Pal: हर्ष की मृत्यु और कन्नौज में यशोवर्मन के अभ्युदय तक उत्तर भारत में एक शक्तिशाली शासन का अकाल रहा था। कन्नौज के इस कालखण्ड (647 ई. – 700 ई.) को इतिहासकार अंध-काल कहते हैं। इस अंध-काल को मिटाने हेतु धूमकेतु की भाँति यशोवर्मन का उदय हुआ था। के. सी. श्रीवास्तव लिखते हैं कि यशोवर्मन ने संभवतः 700 ई. से 740 ई. तक शासन किया।

[07/07, 18:07] Akhilesh Bahadur Pal: उत्तराखण्ड का मध्यकालीन इतिहास पंवार और चंद वंश का पारस्परिक युद्धों का कालखण्ड रहा था। मध्यकालीन उत्तराखण्ड में पंवार तथा चंद वंश को क्रमशः गढ़वाल और कुमाऊँ राज्य स्थापित करने का श्रेय जाता है। चंद राजा रुद्रचंददेव सोहलहवीं शताब्दी में कुमाऊँ राज्य को स्थापित करने में सफल हुए थे। लेकिन रुद्रचंददेव से सैकड़ों वर्ष पहले चंद केवल चंपावत क्षेत्र पर शासन करते थे। कहा जाता है कि वे आरंभ में कत्यूरियों के सामन्त थे और बाद में डोटी के मल्ल राजाओं के करद हुए।

[07/07, 18:08] Akhilesh Bahadur Pal: चौथे क्रमांक वाला ब्रह्मदेव, त्रिलोकपालदेव से 640 से 800 वर्ष पूर्व के कत्यूरी राजा थे। सन् 1279 ई. से 640 वर्ष घटायें तो, सन् 639 ई. को ब्रह्मदेव प्रथम (पाल-डोटी वंशावली के 4 वें क्रमांक वाले ब्रह्मदेव) सिंहासनारूढ़ हुए थे। अर्थात सोमचंद के समकालीन ब्रह्मदेव प्रथम थे, जो संभवतः प्रथम कत्यूरी राजा शालिवाहन के पड़पौत्र थे। सोमचंद के सिहासनारूढ़ वर्ष सन् 700 ई. में वह बूढ़े हो चुके थे।

[07/07, 18:08] Akhilesh Bahadur Pal: पाल और मल्ल वंशावली में 35 वें क्रमांक के ब्रह्मदेव (ब्रह्मदेव द्वितीय) नामक राजा अविभाजित कत्यूरी राज्य के राजा त्रिलोकपालदेव के पूर्ववर्ती थे, जो बारहवीं-तेरहवीं शताब्दी के थे। अतः ब्रह्मदेव द्वितीय सन् 700 ई. के चंपावत राजा सोमचंद के समकालीन नहीं थे। यदि एक पीढ़ी को औसतन 20-25 वर्ष मान्य करें तो, चौथे क्रमांक वाला ब्रह्मदेव, त्रिलोकपालदेव से 640 से 800 वर्ष पूर्व के कत्यूरी राजा थे

[07/07, 18:09] Akhilesh Bahadur Pal: वंशावली के अवलोकन से स्पष्ट होता है कि शालिवाहन से त्रिलोकपालदेव (तेरहवीं शताब्दी) तक ब्रह्मदेव नाम के दो कत्यूरी राजा हुए, एक का नाम वंशावली के चौथे क्रमांक तथा दूसरे का नाम 35 वें क्रमांक पर उत्कीर्ण है। जबकि त्रिलोकपालदेव का नाम वंशावली के 36 वें क्रमांक पर उत्कीर्ण है।

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