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कत्यूरी राजवंश गोत्र प्रवेश आदि -

 कत्यूरी राजवंश गोत्र प्रवेश आदि ---👇    ----------------------------------------  1-  वंश  -  इक्ष्वाकु या सूर्यवंश, रघुवंश   2 - राजवंश - कार्तिकेयपुर ( कत्यूर )     3- गोत्र  -   कश्यप भारद्वाज शौनक     4 - प्रवर  -  पंच प्रवर    5 - वेद  -   यजुर्वेद     6 - ध्वज  -   गोरक्ष     7  - चिन्ह  -   नादिया ( नंदी )      8 -  वृक्ष  -    वट      9  - पक्षी  -   मयूर     10 - मूल पुरुष   - शालिवाहन देव      11 -   पदवी  -   महाराजाधिराज परम भट्टारक चक्र चूड़ामणि देव   12  -  कुलदेवता -   शिव व कार्तिकेय स्वामी भगवान      13 -  कुलदेवी के रूप -    कोटभ्रामरी, नंदा- सुनंदा, महाकाली , झाली माली , आगनेरी , माँ मानिला देवी माँ जिय...

कार्तिकेयपुर राजवंश का स्वर्णिम इतिहास

 [07/07, 18:05] Akhilesh Bahadur Pal: जोशीमठ का नरसिंह मंदिर बसंत देव ने ही बनवाया थे। इस कत्यूरी राजवंश का सबसे प्रतापी राजा इष्टदेवगण का पुत्र राजा ललितसुर थे। जिसके बारे में कहा गया हैं कि गरुण भद्र की उपाधि दी गई थी। तथा ये भगवान विष्णु के अवतार (बराहअवतार) के समान बताया जाता हैं। ललितसुर का पुत्र ही भूदेव था. जिन्होंने बैजनाथ मंदिर का निर्माण करवाया [07/07, 18:05] Akhilesh Bahadur Pal: सोमचंद के चंपावत सिंहासनारूढ़ वर्ष को विद्वानों ने सन् 700 ई. या सातवीं शताब्दी का अंतिम वर्ष निर्धारित किया। सातवीं शताब्दी का इतिहास कन्नौज और उत्तराखण्ड के सन्दर्भ में समझना आवश्यक है। इस शताब्दी में हर्ष के नेतृत्व में कन्नौज उत्तर भारत का सत्ता केन्द्र बन चुका था और कन्नौज से सुदूर उत्तर में ब्रह्मपुर राज्य अस्तित्व में था, जहाँ हर्ष काल में चीनी यात्री ह्वैनसांग ने यात्रा की थी। भारत में 14 वर्ष की यात्रावधि में ह्वैनसांग पो-लो-कि-मो जनपद में भी गया था। पो-लो-कि-मो को जूलियन और कनिंघम ने संस्कृत के ब्रह्मपुर का भाषान्तर माना है। कनिंघम ने ब्रह्मपुर की पहचान आज के चौखुटिया (अल्मोड़ा) से की,...