रचना के जनक बाणभट्ट पीतांबर ने की थी, जिनके पूर्वज कुमायूं के मूल निवासी थे। कवि की कृति के आधार पर सन् 1305 ई0 हिमालय क्षेत्र में स्थितअस्कोट राजवंश के दो राज कुमार अलख देव और तिलक देव एक बड़ी सेना के साथ बस्ती जनपद के महुली स्थान पर आये। वे राज कुमार सूर्यवंशी क्षत्रिय थे। अलख देव जी महुली पर अपना राज्य स्थापित कर दुर्ग बनवाया, उनके छोटे भाई तिलक देव श्री अस्कोट वापस चले गये। कुछ समय उपरांत गौड़ वंश के राजा द्वारा महुली किले पर अधिकार कर लिया गया। किलें पर अधिकार कर रहे तत्कालीन महाराज बख्तावर पाल पाल और उनके पुत्र राज कुमार जसवंत पाल को महुली दुर्ग से बाहर कर दिया। परिणाम स्वरूपर राजकुमार जसवन्त पाल ने गौड़ राजा को युद्ध के लिए ललकारा घोर युद्ध हुआ गौड राजा युद्ध में गारा गया युवराज जसवन्त पाल ने महुली गढ़ को पुन: अपने अधिकार में कर लिया। कृति का प्रथा दोहा- महुली गढ़ लंका मयो रावण हवै गो गौड। रघुवर हो जसवन्त ने दियो गर्व सब तोड।। उक्त दोहे में कवि के हारा महुली गढ़ को लंका कहा गया, इस कारण महुली गढ़ के सूर्यवंशी नरेश यहां निवास करना उचित कविवर की ...
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