अयोध्या के राजा सुमित्र महापदम नंद से पराजित होने के बाद अयोध्या से सूर्य वंश का शासन समाप्त हो गया कश्यप के 221 में वंशज महाराज शालीवाहन देव अयोध्या से कत्यूर घाटी जो कि भगवान कार्तिकेय के नाम पर हैं वहां सेना लेकर गये एवं वहां के शासकों को पराजित कर कत्यूरी सूर्यवंश राज्य की स्थापना किया इन्हीं के आगे बसंत देव त्रिभुवनराज खरपर देव ललित शूर देव कटारमल देव असंती देव निम्बर देव सलोनादित्य भूदेव ईस्ट गण देव आदि प्रतापी राजा हुए ये भगवान शिव की पूजा करते थे इन्होंने समस्त उत्तराखंड पर शासन किया जिसका प्रमाण विभिन्न ताम्रपत्र अभिलेखों में मिलता है कत्यूरी सूर्यवंश शासन में द्वैध शासन प्रणाली थी उत्तराखंड के अंतिम कत्यूरी सम्राट ब्रह्मदेव थे महराज त्रिलोकपाल देव कस्तूरी राज्य पाली पाछहुँ के राजा थे अस्कोट क्षेत्र जहां लोग मानसरोवर यात्रा पर जाते थे रास्ते में डाकु लूट लेते थे एक बार कुछ सन्यासियों ने महराज त्रिलोकपाल देव जी से आग्रह किया कि 1 पुत्र उनकी रक्षा के लिए दें महराज त्रिलोकपाल देव ने अपने छोटे पुत्र महाराज अभय पाल देव को अस्कोट 127 9 ईस्वी में भेजा जहां महाराज अभय पाल देव ने समस्त पाल कत्यूरी सूर्यवंस के आदि पुरुष हैं उन्होंने अस्कोट में पाल सूर्यवंशी स्टेट की स्थापना किया उन्होंने अपने नाम के आगे पाल देव लगाना शुरू किया कालांतर उनके वंशज आज भी पाल सरनेम का प्रयोग करते हैं समस्त पाल सूर्यवंशी को की एक ही पूर्वज महाराज अभय पाल देव हैं जिनकी पुष्टि अस्कोट राज्य में उपलब्ध वंशावली के की जा सकती है महाराजा अभय पाल देव के 3 पुत्र थे महराज निर्भय पाल अलग देव तिलक देव महाराज अलख देव एवम तिलक देव 1305 में एक बड़ी सेना लेकर अस्कोट से महुली बस्ती आए और यहां आकर अपना राज्य स्थापित कर पाल प्रशासन चलाया महाराज अलग देव के बाद में महुली के राजा तप तेजपाल ज्ञान पाल राजा कुंवर पाल राजा तेजपाल राजा सतपाल राजा परशुराम पाल महुली के नौवें राजा दीप पाल हुए इनके एक पुत्र मदन पाल को राजा की उपाधि और महसों का राज्य मिला एवं करण पाल को कुंवर की उपाधियों हरिहरपुर का राज्य मिला हरिहरपुर में पाल सूर्यवंशी परिवार करण पाल के बंसज है एवं महसों में महाराज मर्दन पाल के वंशज हैं समस्त पाल सूर्यवंशी राजपूतों का वैवाहिक संबंध बांसी उनवल सतासी के श्रीनेत परिवार एवं मझौली राज्य के विशेन एवं अन्य सम्मानित राजपूतों में हुआ है अस्कोट में महाराज निर्भय पाल के वंशज है जिनका जिनकी शादी डॉक्टरपूर्व सांसद डॉ. महेंद्र पाल के भाई जंग बहादुर पाल, अधिवक्ता बहादुर पाल व गजेंद्र पाल हैं। हाल ही में अस्कोट के राजा भानू पाल की बेटी गायत्री की शदी जोधपुर के राजा महाराज गज सिंह के बेटे शिवराज सिंह के साथ हुई। डॉ. पाल के बड़े भाई गजराज सिंह की धर्मपत्नी किरन सिंह कश्मीर के राजा कर्ण सिंह की बहन हैं। जबकि गजराज सिंह के ही डॉक्टर बेटे की धर्मपत्नी कामिनी मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह की भांजी हैं। डॉ पाल की धर्मपत्नी मीनू का लखीमपुर खीरी में संघाई स्टेट से ताल्लुक है। चंदवंश के राजा पूर्व सांसद केसी सिंह बाबा व डॉ. पाल के बीच रिश्तेदारी है। वर्तमान में अस्कोट में में 108 वे राजा भानु राज सिंह पाल हैं महसों में अमिताभ पाल राजा हैं एवं हरियापुर में सबसे बरिष्ट पाल राजवंश के कुंवर राजेंद्र बहादुर पाल हैं हरिहर पुर में राजा की उपाधि नहीं थी हरिहरपुर का प्रशासन कत्यूरी वंश के अनुरूप कमेटी पर आधारित था और उम्र एवं पद में वरिष्ठ को का हरिहर पुरा अध्यक्ष बनाया जाता है
कत्यूरी राजवंश ने उत्तराखण्ड पर लगभग तीन शताब्दियों तक एकछत्र राज किया. कत्यूरी राजवंश की ताकत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इसने अजेय मानी जाने वाली मगध की विजयवाहिनी को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था. (Katyuri Dynasty of Uttarakhand) मुद्राराक्षस के ऐतिहासिक संस्कृति रचियता लेखक विशाख दत्त ने चंद्र गुप्त मौर्य और कत्यूरी राजवंश संधि हुई है का विषय में वर्णन किया है चक्रवर्ती सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य संपूर्ण अखंड भारतवर्ष में अंपायर का संघर्षरत विस्तार कर रहे थे | उसे समय मगध डायनेस्टी का हिस्सा ( प्रांत गोरखपुर ) भी रहा है | आज से लगभग 2320 se 2345 साल पहले चंद्रगुप्त का राज था और लगभग ढाई हजार साल पहले शालीवहांन देव अयोध्या से उत्तराखंड आ चुके थे चंद्रगुप्त मौर्य 320 से298 ई0पूर्व का मगध के राजा थे कत्यूरी राजवंश की पृष्ठभूमि, प्रवर्तक और प्रशासनिक केंद्र के रूप में उभरने का कोई प्रमाणिक लेखा-जोखा नहीं मिलता है. यह इतिहासकारों के लिए अभी शोध का विषय ही है. इस सम्बन्ध में मिलने वाले अभिलेखों से कत्यूरी शासकों का परिचय तो मिलता है लेकिन इसके काल निर्धा...
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें