mकर संक्रांति से पहले दिन विभिन्न इलाकों के कत्यूरी वंशज अपनी कुल देवी और आराध्य देवी की पूजा के लिए रानीबाग आते हैं। आज मकर संक्रांति पर्व पर रानीखेत, द्वाराहाट, भिकियासैंण, लमगड़ा, बासोट (भिकियासैंण), धूमाकोट, रामनगर, चौखुटिया, पौड़ी आदि इलाकों से कत्यूरी वंशज बसों में भरकर रानीबाग पहुंचे। उन्होेंने गार्गी नदी में स्नान करने के बाद जियारानी की गुफा में पूजा की और रात्रि में जागर लगाते है । कुल देवी से कष्ट निवारण की मनौती मांगते है कत्यूरी राजवंश की महारानी जियारानी रहीं थी रानीबाग में
हल्द्वानी। कत्यूरी राजवंश चंद्र राजवंश से पहले का था। कुमाऊं में सूर्य वंशी कत्यूरियों का आगमन सातवीं सदी में अयोध्या से हुआ। इतिहासकार इन्हें अयोध्या के सूर्यवंशी राजवंश शालीवान का संबंधी मानते हैं। इनका पहला राजा वासुदेव था। सबसे पहले वह बैजनाथ आया। इनका शासन उत्तराखंड से लेकर नेपाल तक फैला था। द्वाराहाट, जागेश्वर, बैजनाथ आदि स्थानों के मंदिर कत्यूरी राजाओं ने ही बनाए हैं। 47वें कत्यूरी राजा प्रीतम देव की महारानी ही जियारानी थी। प्रीतम देव को पिथौराशाही नाम से भी जाना जाता है। जिनके नाम पर पिथौरागढ़ नगर का नाम पड़ा। जियारानी का असल नाम मौला देवी थाष जो हरिद्वार के राजा अमर देव पुंडीर की दूसरी बेटी थी। अमर देव की पहली बेटी की शादी प्रीतम देव से हुई थी। 1398 में जब समरकंद का शासक तैमूर लंग मेरठ को लूटने के बाद हरिद्वार की ओर बढ़ रहा था, तब अमर देव ने राज्य की रक्षा के लिए प्रीतम देव से मदद मांगी। प्रीतम देव ने अपने भतीजे ब्रह्मदेव के नेतृत्व में विशाल सेना हरिद्वार भेजी, जिसने तैमूर की सेना को हरिद्वार आने से रोक दिया। इस दौरान ब्रह्मदेव की मुलाकात मौला देवी से हुई और वह उससे प्रेम करने लगा। अमर देव को यह पसंद नहीं आया। उसने मौला की मर्जी के खिलाफ उसकी शादी प्रीतम देव से कर दी। मौला देवी को विवाह स्वीकार नहीं था। कुछ दिन राजा के साथ चौखुटिया में रहने के बाद वह नाराज होकर रानीबाग एकांतवाश के लिए आ गईं। माना जाता है कि वो यहां 12 साल तक रही। उसने सनेना की एक छोटी टुकड़ी गठित की और यहां फलों का विशाल बाग लगाया। इसी वजह से इस स्थल का नाम रानीबाग पड़ गया। एक बार रानी गौला नदी में नहा रही थी। उसके लंबे सुनहरे बाल नदी में बहते हुए आगे रोहिल्ला सिपाहियों को मिले। उन्होंने सुनहरे बाल वाली महिला की खोज शुरू की। उनकी नजर नहाते हुए रानी पर पड़ी। सैनिकों से बचने के लिए रानी पहाड़ी पर स्थित गुफा में छिप गई। रानी की सेना रोहिल्लों से हार गई और रानी को गिरफ्तार कर लिया गया। जब इसकी सूचना प्रीतम देव को मिली तो उसने अपनी सेना भेजकर रानी को छुड़ाया और अपने साथ ले गया। कुछ समय बाद प्रीतम देव का देहांत हो गया। उनका पुत्र दुला शाही बहुत छोटा था। इसलिए मौला देवी ने दुला शाही के संरक्षक के रूप में राज्य का शासन किया। पहाड़ में मां को जिया भी कहा जाता है। चूंकि मौला देवी राजमाता थीं, इसलिए वो जियारानी कहलाईं। रानीबाग में जियारानी की गुफा दर्शनीय है।
चित्रशिला का महात्म्य
नदी के किनारे एक विचित्र रंग की शिला है। जिसे चित्रशिला कहा जाता है। कहा जाता है कि इसमें ब्रह्मा, विष्णु, शिव की शक्ति समाहित है। पुराणों के अनुसार नदी किनारे वट वृक्ष की छाया में ब्रह्मर्षि ने एक पांव पर खड़े होकर, दोनों हाथ ऊपर कर विष्णु ने विश्वकर्मा को बुलाकर इस रंगबिरंगी अद्भुत शिला का निर्माण करवाया और उस पर बैठकर ऋषि को वरदान दिया। कुछ लोग इस शिला को जियारानी का घाघरा भी कहते हैं। sabhar amaruzala.com
कत्यूरी राजवंश ने उत्तराखण्ड पर लगभग तीन शताब्दियों तक एकछत्र राज किया. कत्यूरी राजवंश की ताकत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इसने अजेय मानी जाने वाली मगध की विजयवाहिनी को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था. (Katyuri Dynasty of Uttarakhand) मुद्राराक्षस के ऐतिहासिक संस्कृति रचियता लेखक विशाख दत्त ने चंद्र गुप्त मौर्य और कत्यूरी राजवंश संधि हुई है का विषय में वर्णन किया है चक्रवर्ती सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य संपूर्ण अखंड भारतवर्ष में अंपायर का संघर्षरत विस्तार कर रहे थे | उसे समय मगध डायनेस्टी का हिस्सा ( प्रांत गोरखपुर ) भी रहा है | आज से लगभग 2320 se 2345 साल पहले चंद्रगुप्त का राज था और लगभग ढाई हजार साल पहले शालीवहांन देव अयोध्या से उत्तराखंड आ चुके थे चंद्रगुप्त मौर्य 320 से298 ई0पूर्व का मगध के राजा थे कत्यूरी राजवंश की पृष्ठभूमि, प्रवर्तक और प्रशासनिक केंद्र के रूप में उभरने का कोई प्रमाणिक लेखा-जोखा नहीं मिलता है. यह इतिहासकारों के लिए अभी शोध का विषय ही है. इस सम्बन्ध में मिलने वाले अभिलेखों से कत्यूरी शासकों का परिचय तो मिलता है लेकिन इसके काल निर्धा...
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