कस्यप ऋषि से प्रारम्भ सूर्य देव से होते हुए राजा ययाति राजा दिलीप राजा भगीरथ 221 पीढ़ी में अयोध्या के सालिवाहन देव ने उत्तरांचल के कार्तिकेयपुर कत्यूर घाटी में कत्यूरी सूर्यवश राज्य की स्थापना किया इसके बाद निम्बरदेव ललित सुर देव प्रीतम देव अंतिम सम्राट राजा ब्रम्हदेव हुए इनके पुत्र पाली पाछहु के कत्यूरी राजा त्रिलोकपाल हुए त्रिलोकपाल के पुत्र राजा अभयपाल ने अस्कोट राज्य की स्थापना किया इनके छोटे पुत्र महाराजा अलखपाल देव और तिलकपाल देव एक बड़ी सेना लेकर बस्ती जनपद अब संत कबीरनगर के महुली में सूर्यवशपाल वन्स राज्य की स्थापना किया महुली का प्रशासन हरिहर पुर से चलाया जा रहा था और राजा दीप पाल के पुत्र करणपाल हरिहरपुर में रहते हुए 75 गांव tatha kunwar ki upadhi हासिल की आगे इनके वंसज कन्हैया बक्स बहादुर पाल जगत बहादुर पाल सकत बहादुर पाल नरेंद्र बहादुर पाल इनके वंसज जगत बहादुर पाल के पुत्र हरिहर पाल्य देव दान बहादुर पाल हरिहर पाल्य देव के युगल पुत्र ज्ञान बहादुर पाल्य देव चन्द्रिका बक्स पाल्य देव निकट बैलदुहा में निवास बना के २२ गांव के जमींदारी का सचालन किया एक भब्या कत्यूरी वन्स के अनुरूप भब्या शिव मंदिर का निर्माण कराया हरिहरपुर में महादेवपाल ब्रज भासा के कवि रंग नारायण पाल rahe इसके अलावा सीकरी में रामसंकरपाल मङ्सिर कोहना कोदवट जसवर परशुरामपुर में सूर्यवंशी पाल राज वन्स के लोग रहते है
रचना के जनक बाणभट्ट पीतांबर ने की थी, जिनके पूर्वज कुमायूं के मूल निवासी थे। कवि की कृति के आधार पर सन् 1305 ई0 हिमालय क्षेत्र में स्थितअस्कोट राजवंश के दो राज कुमार अलख देव और तिलक देव एक बड़ी सेना के साथ बस्ती जनपद के महुली स्थान पर आये। वे राज कुमार सूर्यवंशी क्षत्रिय थे। अलख देव जी महुली पर अपना राज्य स्थापित कर दुर्ग बनवाया, उनके छोटे भाई तिलक देव श्री अस्कोट वापस चले गये। कुछ समय उपरांत गौड़ वंश के राजा द्वारा महुली किले पर अधिकार कर लिया गया। किलें पर अधिकार कर रहे तत्कालीन महाराज बख्तावर पाल पाल और उनके पुत्र राज कुमार जसवंत पाल को महुली दुर्ग से बाहर कर दिया। परिणाम स्वरूपर राजकुमार जसवन्त पाल ने गौड़ राजा को युद्ध के लिए ललकारा घोर युद्ध हुआ गौड राजा युद्ध में गारा गया युवराज जसवन्त पाल ने महुली गढ़ को पुन: अपने अधिकार में कर लिया। कृति का प्रथा दोहा- महुली गढ़ लंका मयो रावण हवै गो गौड। रघुवर हो जसवन्त ने दियो गर्व सब तोड।। उक्त दोहे में कवि के हारा महुली गढ़ को लंका कहा गया, इस कारण महुली गढ़ के सूर्यवंशी नरेश यहां निवास करना उचित कविवर की ...
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