नागार्जुनकोंडा शिलालेख, नागार्जुनकोंडा क्षेत्र में पाए गए अभिलेखों का एक समूह है जो 210-325 ईस्वी के आसपास के बौद्ध संरचनाओं और इक्ष्वाकु शासन से संबंधित हैं. ये शिलालेख बौद्ध धर्म और व्यापार के संदर्भ में प्राचीन भारतीय सभ्यता को समझने के लिए महत्वपूर्ण हैं.
नागार्जुनकोंडा शिलालेखों का महत्व:
बौद्ध धर्म:
नागार्जुनकोंडा शिलालेखों में बौद्ध धर्म के विभिन्न संप्रदायों, जैसे कि अपर महावन-शैल, और महायान पंथ के विकास का उल्लेख है.
इक्ष्वाकु शासन:
ये शिलालेख इक्ष्वाकु राजाओं के शासनकाल, विशेष रूप से वीरपुरुषदत्त के शासनकाल के बारे में जानकारी प्रदान करते हैं.
कला और वास्तुकला:
नागार्जुनकोंडा की कला और वास्तुकला स्थानीय और विदेशी प्रभावों के संश्लेषण को दर्शाती है, जो व्यापार के कारण सांस्कृतिक आदान-प्रदान का संकेत है.
धार्मिक प्रथाएं:
नागार्जुनकोंडा के अवशेषों से उस समय की धार्मिक प्रथाओं, शैक्षिक प्रणालियों और सामाजिक-आर्थिक संरचनाओं के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है.
सांस्कृतिक आदान-प्रदान:
नागार्जुनकोंडा स्थल प्राचीन भारत के सांस्कृतिक परिदृश्य को आकार देने में बौद्ध धर्म की प्रमुखता का प्रमाण है और व्यापार के कारण सांस्कृतिक आदान-प्रदान का संकेत देता है.
अभिलेखीय साक्ष्य:
शिलालेखों में राजाओं, रानियों और अन्य महत्वपूर्ण व्यक्तियों के नामों, उपाधियों और दान का उल्लेख है, जो उस समय के इतिहास को समझने में मदद करते हैं.
नागार्जुनकोंडा शिलालेखों के कुछ प्रमुख उदाहरण:
इक्ष्वाकु राजा वीरपुरुषदत्त का शिलालेख:
इस शिलालेख में वीरपुरुषदत्त की पत्नी वप्पिश्री द्वारा स्तूप की मरम्मत और एक शाल-स्तंभ की स्थापना का उल्लेख है.
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