सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

अगस्त, 2025 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

नागार्जुनकोंडा शिलालेख इक्ष्वाकु शासन से संबंधित हैं

 नागार्जुनकोंडा शिलालेख, नागार्जुनकोंडा क्षेत्र में पाए गए अभिलेखों का एक समूह है जो 210-325 ईस्वी के आसपास के बौद्ध संरचनाओं और इक्ष्वाकु शासन से संबंधित हैं. ये शिलालेख बौद्ध धर्म और व्यापार के संदर्भ में प्राचीन भारतीय सभ्यता को समझने के लिए महत्वपूर्ण हैं.  नागार्जुनकोंडा शिलालेखों का महत्व: बौद्ध धर्म: नागार्जुनकोंडा शिलालेखों में बौद्ध धर्म के विभिन्न संप्रदायों, जैसे कि अपर महावन-शैल, और महायान पंथ के विकास का उल्लेख है.  इक्ष्वाकु शासन: ये शिलालेख इक्ष्वाकु राजाओं के शासनकाल, विशेष रूप से वीरपुरुषदत्त के शासनकाल के बारे में जानकारी प्रदान करते हैं.  कला और वास्तुकला: नागार्जुनकोंडा की कला और वास्तुकला स्थानीय और विदेशी प्रभावों के संश्लेषण को दर्शाती है, जो व्यापार के कारण सांस्कृतिक आदान-प्रदान का संकेत है.  धार्मिक प्रथाएं: नागार्जुनकोंडा के अवशेषों से उस समय की धार्मिक प्रथाओं, शैक्षिक प्रणालियों और सामाजिक-आर्थिक संरचनाओं के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है.  सांस्कृतिक आदान-प्रदान: नागार्जुनकोंडा स्थल प्राचीन भारत के सांस्कृतिक परिदृश्य को ...

कार्तिकेयपुर या कत्यूरी राजवंश | Kartikeyapur or Katyuri Dynasty in Hindi

  Knowledge Baba मुख्यपृष्ठ About Contact Buy Notes Categories eBooks Sitemap Terms of Use कार्तिकेयपुर या कत्यूरी राजवंश | Kartikeyapur or Katyuri Dynasty in Hindi   कार्तिकेयपुर या कत्यूरी राजवंश(Kartikeyapur or Katyuri Dynasty) (700-1050 ई) प्रारम्भिक राजधानी-कार्तिकेयपुर (जोशीमठ) द्वितीय राजधानी- बैजनाथ (बागेश्वर) शीतकालीन राजधानी- ढिकुली (रामनगर) राजभाषा- संस्कृत लोकभाषा- पालि कत्यूरी शासक नरसिंह देव ने राजधानी कार्तिकेयपुर से स्थानांतरित कर बैजनाथ में बनाई।  675 ई० के आस-पास मध्य हिमालय के सबसे बड़े राज्य ब्रह्मपुर का पतन हो चुका था।   इसी समय प्राचीन कुणिन्दों की एक शाखा उत्तर पश्चिमी गढ़वाल में अपनी शक्ति की वृद्धि में व्यस्त थी तथा अनेक लघु राज्यों को अधीन कर मध्य हिमालय में पुनः एक प्रबल शक्ति के रूप में सामने आई। इस वंश में कुल 14 नरेश हुए और इनके 9 अभिलेख  प्राप्त हुए है। इस प्रकार 700 ई० से लेकर प्रायः तीन शताब्दियों तक कार्तिकेयपुर राजवंश ने राज किया। इसे उत्तराखण्ड का प्रथम ऐतिहासिक राजवंश माना जाता है। इस राजवंश के अब तक कुल नौ अभिलेख प्राप्त हो ...