सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

अयोध्या के अंतिम सूर्यवंशी राजा

 समित्र अयोध्या के अंतिम राजा थे, महापद्मनंद से हार के बाद वह रोहताश ( बिहार ) चले गए । ( बुद्ध पूर्व भारत का इतिहास मिश्र बंधु पृष्ठ -363 ) इसके बाद समित्र के वंसज रोहताश के आसपास रहने लगे, समित्र के दो पुत्र शालीवाहन देव विश्वराज ओर भाई कर्म थे । ये लोग सुमित्र और कुरम सुरथ के पुत्र थे


भावार्थ - सुमित्र जो नृप ( ब्राह्मणो को दान देने वाला, उनका रक्षक)  ने अपने योगबल से अपने शरीर का त्याग कर दिया, सुमित्र के दो पुत्र हुए, विश्वराज ओर कूर्म ।। कूर्म विश्वधर के अनुज थे, ओर उन्ही से आगे कच्छवाहा वंश की उन्नति हुई । कूर्म के दौ पुत्र हुए, कुत्सवाघ ( कच्छव) ओर बुद्धिसेन । उनके बाद सेन नामधारी कई व्यक्ति इस वंश में हुए, उनके पश्चात शंकरदेव हुए ।


तारीखें कश्मीर ( लेखक - मुल्ला अहमद ) सफरनामा ( लेखक - दिवाकर मिहिर ) ओर राजतरंगिणी के अनुसार प. राजसहाय भट्टाचार्य जी ने अपनी पुस्तक कच्छवाह धार का इतिहास लिखते हुए कहते है - शंकरदेव के पश्चात क्रमशः - कृष्ण - कुश - यशोदेव - राजभानु - कर्ममिहिप हुए । 


इसमें से कर्ममिहिप चन्द्रगुप्त मौर्य के मित्र थे ।( कच्छवाहा धार का इतिहास - पेज 46 ) ओर कर्ममिहिप ने ही चन्द्रगुप्त मौर्य का सेनापति बनकर सिकन्दर के मित्र सेल्युकस को पराजित किया था ।  कर्ममिहिप के बाद क्रमशः - रामहीप, सुकीर्ति, जसमयी, अजमयी, श्याममयी, अभित्रजीत, कर्मराज, पुरषोत्तम, वृद्धमान, मरूदेव, भानुदेव, दिवाकरदेव, कीर्तिराय , प्रसन्नजीत, मंगल, ब्रह्मसेन , विक्रम, मुलदेव, अनंगपाल, सूर्यसेन हुए ।।


सूर्यसेन ( सूर्यपाल ) इसमें बहुत ही प्रतापी पुरूष हुए । आज का ग्वालियर उन्होंने ही बसाया था । महात्मा गवलय की इच्छानुसार गोवचल पर्वत पर गोपाद्री नामक बनवाया ( the jaipur ajmer family and state ( 1885 ) dr JP straton page 3 - कुशवाह क्षत्रियोतप्ति मीमांशा - शिवपूजन सिंह पेज -20 ) 


यही गोपाद्री आज ग्वालियर है । सूर्यपाल का जन्म 327 विक्रम संवत में हुआ था । इन्ही के समय कच्छवाहा ग्वालियर आये थे ।


सूर्यपाल का ही कच्छपनागों  से भयंकर युद्ध हुआ था, उस समय नागवंशी राजाओ ने ग्वालियर का हाल वही कर रखा था, जो हाल आज कश्मीर का है, ब्राह्मणो का जीना दुश्वार था, साधारण जनता त्राहिमाम, त्राहिमाम कर रही थी, तब गलवय ऋषि में सूर्यपाल का आह्वाहन कर उन्हें प्रजा की रक्षा करने को प्रेरित किया ।।


ओर राजा सूर्यपाल द्वारा कच्छपनागो को परास्त करने के बाद ही कुश के वंसज अब कच्छवाहा कहलाने लगे ।।


गुप्त साम्राज्य के संस्थापक श्रीगुप्त से भी सूर्यपाल का भयंकर संग्राम छिड़ा, वीर सूर्यपाल में गुप्तो को करारी शिकस्त दी, लेकिन सूर्यपाल के बाद उनके पुत्र श्रीपाल गुप्त के पुत्र घटोत्कच से हार गए ।।


टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

कत्यूरी राजवंश ने उत्तराखण्ड पर लगभग तीन शताब्दियों तक एकछत्र राज किया

 कत्यूरी राजवंश ने उत्तराखण्ड पर लगभग तीन शताब्दियों तक एकछत्र राज किया. कत्यूरी राजवंश की ताकत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इसने अजेय मानी जाने वाली मगध की विजयवाहिनी को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था. (Katyuri Dynasty of Uttarakhand) मुद्राराक्षस के ऐतिहासिक संस्कृति रचियता लेखक विशाख दत्त ने चंद्र गुप्त मौर्य और कत्यूरी राजवंश  संधि हुई है का विषय में वर्णन किया है चक्रवर्ती सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य संपूर्ण अखंड भारतवर्ष में अंपायर का संघर्षरत विस्तार कर रहे थे | उसे समय मगध डायनेस्टी का हिस्सा ( प्रांत गोरखपुर ) भी रहा है | आज से लगभग 2320 se 2345 साल पहले चंद्रगुप्त का राज था और लगभग ढाई हजार साल पहले शालीवहांन देव अयोध्या से उत्तराखंड आ चुके थे चंद्रगुप्त मौर्य 320 से298  ई0पूर्व का मगध के राजा थे  कत्यूरी राजवंश की पृष्ठभूमि, प्रवर्तक और प्रशासनिक केंद्र के रूप में उभरने का कोई प्रमाणिक लेखा-जोखा नहीं मिलता है. यह इतिहासकारों के लिए अभी शोध का विषय ही है. इस सम्बन्ध में मिलने वाले अभिलेखों से कत्यूरी शासकों का परिचय तो मिलता है लेकिन इसके काल निर्धा...

माता सीता की वंशावली

 अपरिवर्तनशील ब्रह्मा 2. ब्रह्मा से उत्पन्न मरीचि 3. मरीचि के पुत्र कश्यप 4. कश्यप से उत्पन्न विवस्वान या सूर्य-देवता 5. विवस्वान के पुत्र मनु 6. इक्ष्वाकु, मनु के पुत्र और अयोध्या के पहले राजा 7. इक्ष्वाकु के पुत्र निमि 8. निमि के पुत्र मिथि 9. मिथि के पुत्र जनक 10. जनक 1 के पुत्र उदावसु 11. उदावसु के पुत्र नंदिवर्धन 12. नंदीवर्धन के पुत्र सुकेतु 13. सुकेतु का पुत्र देवरात 14. देवरात का पुत्र बृहद्रथ 15. बृहद्रथ का पुत्र महावीर 16. महावीर का पुत्र सुधृति 17. सुधृति का पुत्र धृष्टकेतु 18. धृष्टकेतु का पुत्र हर्यश्व 19. हर्यश्व के पुत्र मरु 20. मरु के पुत्र प्रतिन्धक 21. प्रतिन्धक के पुत्र कीर्तिरथ 22. कीर्तिरथ के पुत्र देवमिद्ध 23. देवमिद्ध के पुत्र विबुध 24. विबुध के पुत्र महीद्रक 25. कीर्तिरथ, महीद्रक का पुत्र 26. महारोमा, कीर्तिरात का पुत्र 27. स्वर्णरोमा, महारोमा का पुत्र 28. ह्रस्वरोमा, स्वर्णरोमा का पुत्र 29ए। जनक, ह्रस्वरोमा 29बी के बड़े पुत्र । कुशध्वज, ह्रस्वरोमा का छोटा पुत्र

महाभारत में सूर्य वंश की वंशावली मिलती है

 महाभारत में सूर्य वंश की वंशावली मिलती है। वैवस्वत मनु से सूर्य वंश की शुरुआत मानी गई है। महाभारत में पुलस्त्य ने भीष्म को सूर्य वंश का विवरण बताया सूर्यवंश वंशावली सतयुग 1.आदित्य नारायण 2.ब्रह्मा 3 मरीचि (पत्नि सुमति) 4 कश्यप ( पत्नि अदिति (दक्षपुत्री)) __________________________ सूर्य 5 विवस्वान सूर्य 6 मनु (वैवस्वत+पत्नि संक्षा, अयोध्या बसाई) (मनु के पुत्र-ऐक्ष्वाकु, नाभाग, धृष्ट, प्रासु, शर्याति, नरिष्यन, नागाभोदिष, करुष, प्रसघ्र- पुत्री ईला) 7 ऐक्ष्वाकु (ऐक्ष्वाकु वंश कहलाया) (ऐक्ष्वाकु के पुत्र-विकुक्षी, निमि, दंड, नाभागारिष्ट, कुरुष, कुबद्ध) (इनके 100 पुत्र थे, 50 उत्तरपंथ के राजवंश के स्थापक बने, 50 दक्षिणपंथ के राजवंश के स्थापक बने) 8 विकुक्षी (शशाद) 9 पुरंजय (कुकुत्स्थ) (देवासुर संग्राम मे देवता की मदद की) 10 अनेना (वेन) __________________________ *पृथु* 11 पृथु 12 विश्वरंधि (विश्वराश्व) 13 चंद्र (आर्द्र) 14 युवनाश्व 15 श्रावस्त (श्रावस्ति नगरी बसाई) 16 बृहद्श्व (लंबा आयुष्य भोग, वानप्रस्थ लिया) 17 कुवल्याश्व (धंधुमार) (धंधुमार के पुत्र- द्रढाश्व, चंद्रश्व, कायलाश्व, भद्...