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नवंबर, 2024 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

वंशी राजा महाशिवगुप्त को सिरपुर अभिलेख

 मध्य प्रदेश के एक गुप्त वंशी राजा महाशिवगुप्त को सिरपुर अभिलेख में चंद्रवंशी क्षत्रिय कहा गया बिहार में पाए गए ताम्रपत्र अभिलेख में गुप्त उपाधि वाले छह राजाओं का नाम मिलता है यह अपने आप को शैव मता लंबी और अर्जुन का वंशज मानते हैं इन्हें सोमवंशी क्षत्रीय  बताया गया है जावा के एक ग्रंथ तंत्र कामन्दक में  इच्छ वा कु के वन्ससिय महाराज ऐश्वर्या पाल अपने को समुद्र गुप्त परिवार से संबंध बताते हैं गुप्त राजाओं के lichhavi  vakatak से भी वैवाहिक संबंध था

अयोध्या के अंतिम सूर्यवंशी राजा

 समित्र अयोध्या के अंतिम राजा थे, महापद्मनंद से हार के बाद वह रोहताश ( बिहार ) चले गए । ( बुद्ध पूर्व भारत का इतिहास मिश्र बंधु पृष्ठ -363 ) इसके बाद समित्र के वंसज रोहताश के आसपास रहने लगे, समित्र के दो पुत्र शालीवाहन देव विश्वराज ओर भाई कर्म थे । ये लोग सुमित्र और कुरम सुरथ के पुत्र थे भावार्थ - सुमित्र जो नृप ( ब्राह्मणो को दान देने वाला, उनका रक्षक)  ने अपने योगबल से अपने शरीर का त्याग कर दिया, सुमित्र के दो पुत्र हुए, विश्वराज ओर कूर्म ।। कूर्म विश्वधर के अनुज थे, ओर उन्ही से आगे कच्छवाहा वंश की उन्नति हुई । कूर्म के दौ पुत्र हुए, कुत्सवाघ ( कच्छव) ओर बुद्धिसेन । उनके बाद सेन नामधारी कई व्यक्ति इस वंश में हुए, उनके पश्चात शंकरदेव हुए । तारीखें कश्मीर ( लेखक - मुल्ला अहमद ) सफरनामा ( लेखक - दिवाकर मिहिर ) ओर राजतरंगिणी के अनुसार प. राजसहाय भट्टाचार्य जी ने अपनी पुस्तक कच्छवाह धार का इतिहास लिखते हुए कहते है - शंकरदेव के पश्चात क्रमशः - कृष्ण - कुश - यशोदेव - राजभानु - कर्ममिहिप हुए ।  इसमें से कर्ममिहिप चन्द्रगुप्त मौर्य के मित्र थे ।( कच्छवाहा धार का इतिहास - पेज 46 ...