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सूर्यवंश एवं कत्यूरी सूर्यवंशी

[06/10, 16:23] Akhilesh Bahadur Pal: रोहतासगढ़ किले से सम्बन्धित 12 वीं सदी से पहले का कोई शिलालेख तो नहीं मिलाता, लेकिन विभिन्न इतिहासकारों के मुताबिक इस किले पर कभी कछवाह क्षत्रिय वंश का शासन था और इसी वंश के रोहिताश्व ने इस किले का निर्माण करवाया था। रोहिताश्व के नाम पर इस किले का नाम रोहतासगढ़ पड़ा। इतिहासकार देवीसिंह मंडावा अपनी पुस्तक राजपूत शाखाओं का इतिहास के पृष्ठ- 219 पर लिखते है- ‘‘सूर्यवंश में अयोध्या का अंतिम शासक सुमित्र था। जिसे लगभग 470 ई.पूर्व मगध देश के प्रसिद्ध शासक अजातशत्रु ने परास्त करके अयोध्या पर अधिकार कर लिया। अयोध्या पर शासन समाप्त होने के बाद सुमित्र का बड़ा पुत्र विश्वराज पंजाब की ओर चले गए छोटा पुत्र कूरम अयोध्या क्षेत्र में ही  रहे इसी के नाम से इसके वंशज कूरम कहलाये। बाद में कूरम ही कछवाह कहलाने लगे। इसी वंश का महीराज मगध के शासक महापद्म से युद्ध करते हुए मारा गया था। मगध के कमजोर पड़ने पर कूरम के वंशजों ने रोहितास पर अधिकार कर लिया। रोहितास का प्रसिद्ध किला इन्हीं कूरम शासकों का बनवाया हुआ है।’’ कर्नल टॉड लिखते हैं कि ‘‘महाराजा कुश के कई पीढ़ी बाद उसी के किसी वंशधर ने शोणनद (सोन नदी) के किनारे रोहतास नामक दुर्ग का निर्माण कराया था।’’
बांकीदास की ख्यात में लिखा है- ‘‘कछवाह रो राज थेटू पूरब में रोहितासगढ़, उठा सूं नरवर बासिया।’’ कर्नल टॉड कृत राजस्थान का पुरातत्व एवं इतिहास, भाग-3, पृष्ठ 59 पर लिखा है- ‘‘कछवाह या कछुवा जाति वाले अपनी उत्पत्ति राम के द्वितीय पुत्र कोसल नरेश कुश से मानते है। उनकी राजधानी अयोध्या थी। कुश और उनके पुत्रों के बारे में कहा जाता है कि वे अपने पैतृक स्थान छोड़कर अन्यत्र चले गए थे और उन्होंने रोहिताश्व-रोहतास का प्रसिद्ध दुर्ग बनवाया था। ‘‘राजस्थान के विख्यात और प्रथम इतिहासकार नैणसी ने अपनी पुस्तक नैणसी री ख्यात, भाग-2, पृष्ठ 23 पर कछवाह राजवंश की वंशावली में उदृत किया है- ‘‘राजा हरिचंद त्रिशंकु का, राणी तारादे कुंवर रोहितास, रोहितासगढ़ बसाया।’’
किले में लिखा एक शिलालेख, जो 1169 का है, से पता चलता है कि जपिला के खैरवालवंशी प्रताप धवल ने रोहतासगढ़ तक एक सड़क का निर्माण कराया था। 1223 के लाल दरवाजे के पास मिले शिलालेख में प्रताप धवल के वंशजों का वर्णन है। इससे स्पष्ट है कि 12 वीं व 13 वीं सदी में यह गढ़ प्रताप धवल के वंशजों के अधिकार में था। यही नहीं 16 वीं सदी में शेरशाह सूरी द्वारा यह किला हिन्दू राजा से धोखे द्वारा लिए जाने तक इस पर हिन्दू राजाओं का अधिपत्य रहा। दीनानाथ दूबे के अनुसार 16 वीं सदी में शेरशाह सूरी के अधीन होने पर उसके विश्वस्त सेनापति हैबत खान ने 1543 में तीन गुम्बद वाली जामी मस्जिद का निर्माण कराया, जिसके पास एक मकबरा भी है। अकबर के बादशाह बनने व बंगाल व बिहार पर उसका अधिपत्य के होने बाद यह किला मुगल साम्राज्य के पूर्वी सूबे सदर मुकाम बना। आमेर के राजा मानसिंह जब यहाँ के सूबेदार बने तो इस किले का भाग्य फिरा और इसने अपना खाया वैभव पुनः प्राप्त किया। राजा मानसिंह के पूर्वज कछवाहों द्वारा निर्मित होने के कारण राजा मानसिंह को इस किले से बेहद लगाव था। साथ ही किले के सामरिक महत्त्वपूर्ण को देखते हुए राजा मानसिंह ने इस किले को अपना मुख्यालय बनाया और किले की मरम्मत कराने के साथ ही अपनी शान के अनुरूप यहाँ कई महल, मंदिर आदि बनवाये। अकबर के शासन में इस दुर्ग में डेढ़ लाख से ऊपर सैनिक और 4550 घुड़सवारों का रिसाला रखा जाता था।
शाहजादा खुर्रम ने, जो बाद में शाहजहाँ के नाम से बादशाह बना, नूरजहाँ के षड़यंत्रो से व्यथित होकर 1621 में अपने पिता जहाँगीर के खिलाफ बगावत की और इस काल में अपनी बेगम मुमताज-महल के साथ रोहतासगढ़ में शरण ली थी। औरंगजेब के काल में यह किला एक तरह से यातना शिविर में बदल गया था। 1736 तक यह किला नबाब मीर कासिम के हाथ में रहा, पर अंग्रेजों के साथ बक्सर की लड़ाई हारने पर मीर कासिम भाग गया और किले पर अंग्रेजी प्रभुत्व कायम हुआ। अग्रेजी प्रभुत्व में इस दुर्ग को सर्वाधिक नुकसान ब्रिटिश सैनिकों ने पहुँचाया।
1857 के प्रथम स्वाधीनता संग्राम के दौरान रोहतासगढ़ स्वतंत्रता सेनानियों का केंद्र रहा। स्वतंत्रता संग्राम को कुचलने के लिए यहाँ अपनी हार से बौखलाए अंग्रेजों ने इस किले को तहस नहस करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। किले के चारों का और का घना जंगल भी अंग्रेजों ने कटवा दिया। तब यह किला वीरान पड़ा है।
[06/10, 16:39] Akhilesh Bahadur Pal: शालिवाहन देव महाराज माही राज के पुत्र रहे होंगे जो कार्तिकेय पुर चले गए होंगे कत्यूरी राजवंश की स्थापना किया महाराज महीराज महापदम नंद से हारे थे
[06/10, 16:39] Akhilesh Bahadur Pal: सुमित्र को अजातशत्रु ने हराया था
[06/10, 17:15] Akhilesh Bahadur Pal: सातवाँ अध्याय।
पुराणों में अयोध्या (क) सूर्यवंश अयोध्या सूर्यवंशी राजाओं की राजधानी है। इस राजवंश में विचित्रता यह है कि और जितने राजवंश भारत में हुये उनमें यह सबसे लम्बा है। आगे जो वंशावली दी हुई है उसमें १२३ राजाओं के नाम हैं जिनमें से ९३ ने महाभारत से पहिले और ३० ने उसके पीछे राज्य किया। जब उत्तर भारत के प्रत्येक राज्य पर शकों, पह्नवों और काम्बोजों के आक्रमण हुये और पश्चिमोत्तर और मध्य देश के सारे राज्य परास्त हो चुके थे तब भी कोशल थोड़ी ही देर के लिये दब गया था और फिर संभल गया। कोई राजवंश न इतना बड़ा रहा न अटूट क्रम से स्थिर रहा जैसा कि सूर्यवंश रहा है और न किसी की वंशावली ऐसी पूर्ण है, न इतनी आदर के साथ मानी जाती है। प्रसिद्ध विद्वान पाजिटर साहेब का मत है कि पूर्व में पड़े रहने से कोशलराज उन विपत्तियों से बचा रहा जो पश्चिम के राज्यों पर पड़ी थीं। हमारा विचार यह है कि सैकड़ों बरस तक कोशल के शासन करनेवाले लगातार ऐसे शक्तिशाली थे कि बाहरी आक्रमणकारियों को उनकी ओर बढ़ने का साहस नहीं हुआ और इसी से उनकी राजधानी का नाम "अयोध्या" या अजेय पड़ गया। पूर्व में रहने अथवा युद्ध के योग्य अच्छी स्थिति से उनका देश नहीं बचा। महाभारत ऐसा सर्वनाशी युद्ध हुआ जिससे भारत की समृद्धि, ज्ञान, सभ्यता अदि सब नष्ट हो गये और उसके पीछे भारत में अन्धकार छा गया । सब के साथ सूर्यवंश की भी अवनति होने लगी और जब महापद्मनन्द के राज में या उसके कुछ पहिले क्रान्ति हुई तो कोशल शिशुनाक राज्य के अन्तर्गत हो गया । महाभारत में भी कोशलराज ने [ ६३ ]पुराणों में अयोध्या अपनी पुरानी प्रतिष्ठा के योग्य कोई काम नहीं कर दिखाया जिसका कारण कदाचित् यही हो सकता है कि जरासन्ध से कुछ दब गया था। बेण्टली साहेब ने ग्रहमंजरी के अनुसार जो गणना की है उससे इस वंश का प्रारम्भ ई० पू० २२०४ में होना निकलता है । मनु सूर्यवंश और चन्द्रवंश दोनों के मूल-पुरुष थे। सूर्यवंश उनके पुत्र इक्ष्वाकु से चला और चन्द्रवंश उनकी बेटी इला से । मनु ने अयोध्या नगर बसाया और कोशल की सीमा नियत करके इक्ष्वाकु को दे दिया । ३८वाकु उत्तर भारत के अधिकांश का स्वामी था क्योंकि उसके एक पुत्र निमि ने विदेह जाकर मिथिलाराज स्थापित किया दूसरे दिष्ट या नेदिष्ट ने गण्डक नदी पर विशाला राजधानी बनाई। प्रसिद्ध इतिहासकार डंकर ने महाभारत की चार तारीस्त्रं मानी हैं, ई० पू० १३००, ई० पू० ११७५, ई० पू० १२०० और ई० पू० १४१८, परन्तु पार्जिटर उनसे सहमत नहीं हैं और कहते हैं कि महाभारत का समय ई० पू० १००० है । उनका कहना है कि अयुष, नहुष और ययाति के नाम ऋग्वेद में आये हैं; ये ई० पू० २३०० से पहिले के नहीं हो सकते । रायल एशियाटिक सोसाइटी के ई० १९१० के जर्नल में जो नामावली दी है उनके अनुसार चन्द्रवंश का अयुष, सूर्यवंश के शशाद का समकालीन हो सकता है और ययाति अनेनस् का । पार्जिटर महाशय का अनुमान बेण्टली के अनुमान से मिलता जुलता है। परन्तु महाभारत का समय अब तक निश्चित नहीं हुआ। राय बहादुर श्रीशचन्द्र विद्यार्णव ने “डेट अव महाभारत वार" (Date of Maha. bharata War) शीर्षक लेख में इस प्रश्न पर विचार किया है और उनका अनुमान यह है कि महाभारत ईसा से उन्नीस सौ बरस पहिले हुआ था। अब हम सूर्यवंशी राजाओं के माम गिनाकर उनमें जो प्रसिद्ध हुये उनका संक्षिप्त वृत्तान्त लिखते हैं। [ ६४ ]अयोध्या के सूर्यवंशी राजा (महाभारत से पहिले) १ मनु २ इक्ष्वाकु ३ शशाद ४ ककुत्स्थ ५ अनेनस ६ पृथु ७ विश्वगाश्व ९ युवनाश्व श्म १० श्रावस्त १२ कुवलयाश्व १३ रढ़ाश्व १४ प्रमोद १५ हर्यश्व १म १६ निकुम्म १७ संहताश्व १८ कृशाश्व १९ प्रसेनजित २० युवनाश्व २य २१ मान्धात [ ६५ ]अयोध्या के सूर्यवंशो राजा २२ पुरुकुत्स * २३ त्रसदस्यु २४ सम्भूत २५ अनरण्य २६ पृषदश्व २७ हर्यश्व २य २८ वसुमनस् २९ तृधन्वन् ३० चैयारुण ३१ त्रिशंकु ३२ हरिश्चन्द्र ३३ रोहित ३४ हरित ३५ चंचु (चंप, भागवत के अनुसार) ३६ विजय ३८ वृक ३९ बाहु ४० सगर ४१ असमञ्जस ४२ अंशुमत् ४३ दिलीप श्म ४४ भगीरथ ४५ श्रुत

विरुणुपुराण के अनुसार मान्धात का बेटा अंबरीष था उसका पुत्र हारीत

हुआ जिससे हारीता गिरस नाम पत्रियकुल चला । ९ [ ६६ ]अयोध्या का इतिहास ४६ नाभाग ४७ अम्बरीष ४८ सिंधुद्वीप ४९ अयुतायुस् ५० ऋतुपर्ण ५१ सर्वकाम ५२ सुदास ५३ कल्माषपाद ५४ अश्मक ५५ मूलक ५६ शतरथ ५७ वृद्धशर्मन् ५८ विश्वसह १म ५९ दिलीप २ य ६० दीर्घबाहु ६२ अज ६३ दशरथ ६४ श्रीरामचन्द्र ६५ कुश ६६ अतिथि ६७ निषध ६८ नल ६९ नभस् ७० पुण्डरीक ७१ क्षेमधन्वन [ ६७ ]EL अयोध्या के सूर्यवंशी राजा ७२ देवानीक ७३ अहीनगु ७४ पारिपात्र ७६ शल ७७ उक्थ ७८ वजनाभ ७९ शंखन ८० व्युषिताश्व ८१ विश्वसह २य ८२ हिरण्यनाभ ८३ पुष्य ८४ ध्रुवसन्धि ८५ सुदर्शन ८६ अग्निवर्ण ८७ शीघ्र ८८ मरु ८९ प्रथुश्रुत ९. सुसन्धि ९१ अमर्ष ९२ महाश्वत ९३ विश्रुतवत् ९४ बृहद्वल *

इसे अभिमन्यु ने मारा था ( महाभारत द्रोणपर्व )। [ ६८ ]महाभारत के पीछे के सूर्यवंशी राजा १ बृहत्क्षय २ उरुक्षय ३ वत्सद्रोह ( या वत्सव्यूह) ४ प्रतिव्योम ५ दिवाकर ६ सहदेव ७ ध्रुवाश्व ( या वृहदश्व ) ८ भानुरथ ९ प्रतीताश्व ( या प्रतीपाश्व) १० सुप्रतीप ११ मरुदेव ( या सहदेव) १२ सुनक्षत्र १३ किन्नराव (या पुष्कर) १४ अन्तरिक्ष १५ सुषेण ( या सुपर्ण या सुवर्ण या सुतपस्) १६ सुमित्र (या अमित्रजित् ) १७ बृहद्रज (भ्राज या भारद्वाज) १८ धर्म ( या वीर्यवान् ) १९ कृतञ्जय २० बात २१ रगञ्जय २२ सय [ ६९ ]महाभारत के पीछे के सूर्यवंशी राजा २३ शाक्य २४ क्रुद्धोद्धन या शुद्धोदन २५ सिद्धार्थ २६ राहुल (या रातुल, बाहुल) लांगल या पुष्कल) २७ प्रसेनजित (या सेनजित ) २८ क्षुद्रक (या विरुधक) २९ कुलक ( तुलिक, कुन्दक, कुडव, रणक) ३० सुरथ ३१ सुमित्र

अंतिम राजा महानन्द की राजक्रान्ति में मारा गया

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