सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

अक्टूबर, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

Katyuri Dynasty

 Katyuri Dynasty : (7,8th -11 Century,Debatable) : Lord Shiva was widely worshipped,along with other local gods. In this era Shankaracharya visted Uttarakhand and Nepal replacing Buddhism and spreading Orthodox Hindu religion .The Buddhist monks were also replaced by Brahmin priest of South in Kedarnath and Badrinath temple.Immigrant Brahmins and constant Rajput inflow divided the Uttarakhand into different Castes.(Brahmins,Rajput Kshatriyas,Khasis,Chandals/Doms) Period : (Debatable) Origin of this dynasty was from Joshimath(Present-Chamoli District,Garhwal,Uttarakhand),where Basu Dev fought and took over other houses/clans at the time.The small provinces/houses were called Khashas (There’s an ancient temple of Vasudev at Joshimath).Later the epicentre or the capital town was shifted to Now Baijnath(Present-Bageshwar District,Kumaun,Uttarakhand).Below is the list if successors of the period. Basantana Dev ,Kharpar Dev,Adhiraj Dev,Tribhuvan Raj Dev,Nimbarta Dev,Ishttanga Dev,Lalitsu...

अमोढ़ाखास या अमोढ़ा रियासत कत्यूरी सूर्यवंशी

 [22/10, 15:55] Akhilesh Bahadur Pal: कुछ कथायंे कहती हैं कि प्रत्येक राजपूत वंश अवध से सम्बद्ध थी। इसी प्रकार महुली महसों की भांति अमोढ़ा के कायस्थ को एक दूसरे सूर्यवंशी द्वारा अलग निकाल दिया गया था। इनके मुखिया कान्हदेव थे जो तिलक देव के वंशज थे उस क्षेत्र के कायस्थ जमींदार को भगाकर स्वयं को स्थापित किये थे। इसमें उन्हें आंशिक सफलता मिली थी। उनका पुत्र कंशनाराण पूर्वी आधा भूभाग कायस्थ राजा से प्राप्त कर लिया था। उनके उत्तराधिकारी ने बाकी बचे हुए भाग को जीतकर पूरा अमोढ़ा को अपने अधीन किया था। इस्लाम के आने पर कायस्थ राजकीय सहायक के रूप में आशावान हुए। मुगलकाल में वह पुनः स्थापित हुए। बस्ती मण्डल के शेष भाग में राजपूत वंश का ही बोलवाला थां अपवाद स्वरूप मगहरं मुस्लिम शासक के अधीन था। अमोढ़ा राज्य एक लम्बे समय तक अवध का अन्तर्भुक्त रहा है। गोरखपुर सरकार के अधीन यह बहुत बाद में आया था। इस कारण अंग्रेजों को यहां काफी मशक्कत उठानी पड़ी थी। अमोढ़ाखास या अमोढ़ा रियासत:-यह जिला मुख्यालय से 41 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इसका पुराना नाम अमोढ़ा है। यह पुराने दिनों में राजा जालिम सिंह का एक प्रांत...

Suryavance ka itihas

 [06/10, 16:23] Akhilesh Bahadur Pal: रोहतासगढ़ किले से सम्बन्धित 12 वीं सदी से पहले का कोई शिलालेख तो नहीं मिलाता, लेकिन विभिन्न इतिहासकारों के मुताबिक इस किले पर कभी कछवाह क्षत्रिय वंश का शासन था और इसी वंश के रोहिताश्व ने इस किले का निर्माण करवाया था। रोहिताश्व के नाम पर इस किले का नाम रोहतासगढ़ पड़ा। इतिहासकार देवीसिंह मंडावा अपनी पुस्तक राजपूत शाखाओं का इतिहास के पृष्ठ- 219 पर लिखते है- ‘‘सूर्यवंश में अयोध्या का अंतिम शासक सुमित्र था। जिसे लगभग 470 ई.पूर्व मगध देश के प्रसिद्ध शासक अजातशत्रु ने परास्त करके अयोध्या पर अधिकार कर लिया। अयोध्या पर शासन समाप्त होने के बाद सुमित्र का बड़ा पुत्र विश्वराज पंजाब की ओर चले गए छोटा पुत्र कूरम अयोध्या क्षेत्र में ही  रहे इसी के नाम से इसके वंशज कूरम कहलाये। बाद में कूरम ही कछवाह कहलाने लगे। इसी वंश का महीराज मगध के शासक महापद्म से युद्ध करते हुए मारा गया था। मगध के कमजोर पड़ने पर कूरम के वंशजों ने रोहितास पर अधिकार कर लिया। रोहितास का प्रसिद्ध किला इन्हीं कूरम शासकों का बनवाया हुआ है।’’ कर्नल टॉड लिखते हैं कि ‘‘महाराजा कुश के कई पीढ़ी बाद उ...