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pal rajvance hariharpur

Suryavanshi pal rajvance hariharpur

महुली( महसों हरिहरपुर) रियासत का इतिहास

अनुश्रूतियों के अनुसार कत्यूर साम्राज्य आधुनिक उत्तराखण्ड के कुमायूं मण्डल के राजा ब्रह्मदेव थे। ब्रह्मदेव के पौत्र अभयपाल देव ने पिथैरागढ़ के असकोट में अपनी राजधानी बनायी थी। उनके शासन के बाद उनके पुत्र अभयपाल के समय यह साम्राज्य विघटित हो गया। अभयपाल देव के दो छोटे पुत्र अलखदेव और तिलकदेव थे। महाराजा अलख देव और तिलकदेव असकोट को छोड़कर एक बड़ी सेना लेकर 1305 में उत्तर प्रदेश के तराई क्षेत्र में गोरखपुर व गोण्डा में आ गये। यह क्षेत्र भयंकर दलदल तथा बनों से आच्छादित था। यहां पर राजभर आदिवासियों का आधिपत्य था। इस क्षेत्र के दक्षिण में घाघरा तथा पूर्व में राप्ती बहती है जिनसे क्षेत्र की रक्षा होता थी। इन दो राजाओं ने महुली को अपनी राजधानी बना कर पाल वंश का नया प्रशासन प्रारम्भ किया। इसी प्रकार ये फैजाबाद जिले के पूरा बाजार में भी बस गये थे। कहा यह भी जाता है कि ये बाराबंकी के राजा हर्ष से जुड़े थे। पूरा बाजार के परिवार में आदिपुरुष लालजी शाह थे। जबकि बस्ती के महुली के आदि पुरुष अलख देव और तिलकदेव दो भाइयों के वंशज हैं। संभव है ये दोनो एक दूसरे से जुड़े रहे हों। अनुश्रूतियों के अनुसार दोनों भ...

अभय पाल देव

उत्तराखंड के पिथौरागढ़ में भारत-नेपाल सीमा पर एक नगर है असकोट, यह तेरहवीं शताब्दी में कत्यूरी शासकों की एक शाखा द्वारा बसाया गया। इतिहासकारों में कत्यूरी शासकों को ले कर कई मतभेद हैं, इनके विषय में विशेष प्रामाणिक लेख उपलब्ध नही हैं। ब्रिटिश सरकार ने अपने शासनकाल में ई.टी.एटकिंसन को उत्तरी प्रांतों की जिलेवार रिपोर्ट बनाने के लिए नियुक्त किया। एटकिंसन के अनुसार कत्यूरी साम्राज्य उत्तर में भागलपुर (बिहार) से ले कर पश्चिम में काबुल (अफ़ग़ानिस्तान) तक था। [बद्री दत्त पाण्डेय के अनुसार कत्यूरी मूल रूप से अयोध्या से थे एवं उनका राज्य नेपाल से अफ़ग़ानिस्तान तक था] किंवदंतियों और एटकिंसन के अनुसार शालिवाहन देव अयोध्या से हिमालय जाकर बद्रीनाथ के निकट जोशीमठ में बसे। उन्हीं के वंशज वासुदेव ने कत्यूरी वंश की स्थापना की। एटकिंसन ने असकोट के तत्कालीन राजवर से प्राप्त जानकारी और ताम्रपत्र शिलालेखों के आधार पर असकोट राजपरिवार के विषय में हिमालयन गज़ेटियर में लिखा। छठी और सातवीं शताब्दी में कत्यूरी वंश का साम्राज्य अपने चरम पर था। फिर आपसी सामंजस्य की कमी और पारिवारिक कलह के चलते उसके पतन का दौर आया। सम्रा...

#कत्युर_राजवंश (पाल सूर्यवंशी )

#कत्युर_राजवंश (पाल सूर्यवंशी ) आज आपको उत्तराखंड के सबसे पुराने राजवंश से अवगत करवाते है । उत्तराखंड पर आज तक कत्यूरियो के अतिरिक्त कोई भी राजवंश एकछत्र राज नही कर पाया चाहे गढ़वाल का परमार राजवंश हो या चंद राजवंश । उत्तराखंड का सबसे पुराना राजवंश है । कत्यूरियो के राज स्थापना के बारे मैं अलग अलग राय है ईसा के 2500 पूर्व से 7वी सदी तक इनका शासन एक छत्र रहा । उसके बाद चंद राजाओं ने इनके शासन का अंत किया । इनकी राजधानी अस्कोट है कहा जाता है एक समय वह अस्सी कोट थे इस वजह से अस्कोट नाम भी पड़ा जो अब भी पिथोरागढ़ जिले में है । कत्युरी प्राचीन सूर्यवंशी राजपूत माने जाते है शालिवाहन देव इनके मूल पुरुष है जो अयोध्या से आकर यहाँ अपना साम्राज्य बनाया । इनके राज्य का विस्तार पूर्व में सिक्किम से पश्चिम में काबुल तक था बंगाल में मिले शिलालेखो इनके शिलालेखों से मिलते है जिस से इनके राज्य के विस्तार के संभावना बनती है । कुछ शिलालेख बिहार के मुंगेर और भागलपुर से भी मिले है जो वैसे ही है जैसे शिलालेख कत्यूरियो के है एकमात्र सूर्य मंदिर जो उत्तराखंड में है वो कत्युरी राजाओ का ही बनाया हुआ है इसके आल...

परगना अस्कोट pal vance

logo1 परगना अस्कोट Submitted by editorial on Author:दीप चन्द्र चौधरी Source:पहाड़, पिथौरागढ़-चम्पावत अंक (पुस्तक), 2010 अस्कोट वन्य जीव अभयारण्य अस्कोट वन्य जीव अभयारण्यऐतिहासिक साक्ष्यों से यह तथ्य सामने आता है कि अस्कोट राज्य की स्थापना सन 1238 ई. में हुई और यह 1623 ई. तक स्वतंत्र रूप में विद्यमान रहा। अपनी स्थिति एवं विशिष्टता के कारण यह कत्यूरी, चन्द, गोरखा व अंग्रेजी शासन के बाद स्वतंत्र भारत में जमींदारी उन्मूलन तक रहा। अस्कोट परगना महा व उप हिमालयी पट्टी के मिलन पर बना एक विस्तृत भू-खण्ड है, जिसमें छिपला एवं घानधुरा जैसे सघन वनों से आवृत्त पर्वत मालायें, गोरी, काली, धौली नदियों की गहरी घाटियों के क्षेत्र और आकर्षक सेरे मानव बसाव के लिये उपयुक्त रहे। अस्कोट काली जल-ग्रहण क्षेत्र में पड़ता है। इसमें छिपला से उतरने वाली अनेक छोटी नदियाँ जैसे मदकनी, बरमगाड़, रौंतीसगाड़, चरमगाड़, चामीगाड़, गुर्जीगाड़ के ढालों में भी काश्त के लिये सीढ़ीदार उपजाऊ खेत और इन खेतों से लगे छोटे-छोटे बनैले गाँव आकर्षण का कारण बनते हैं। प्राकृतिक संसाधनों की दृष्टि से अस्कोट एक सम्पन्न परगना माना जा सकता है...

हरिहरपुर स्टेट

कस्यप ऋषि से प्रारम्भ सूर्य देव से होते हुए राजा ययाति राजा दिलीप राजा भगीरथ 221 पीढ़ी में अयोध्या के सालिवाहन देव ने उत्तरांचल के कार्तिकेयपुर कत्यूर घाटी में कत्यूरी सूर्यवश राज्य की स्थापना किया इसके बाद निम्बरदेव ललित सुर देव प्रीतम देव अंतिम सम्राट राजा ब्रम्हदेव हुए इनके पुत्र पाली पाछहु के कत्यूरी राजा त्रिलोकपाल हुए त्रिलोकपाल के पुत्र राजा अभयपाल ने अस्कोट राज्य की स्थापना किया इनके छोटे पुत्र महाराजा अलखपाल देव और तिलकपाल देव एक बड़ी सेना लेकर बस्ती जनपद अब संत कबीरनगर के महुली में सूर्यवशपाल वन्स राज्य की स्थापना किया महुली का प्रशासन हरिहर पुर से चलाया जा रहा था और राजा दीप पाल के पुत्र करणपाल हरिहरपुर में रहते हुए 75 गांव tatha kunwar ki upadhi हासिल की आगे इनके वंसज कन्हैया बक्स बहादुर पाल जगत बहादुर पाल सकत बहादुर पाल नरेंद्र बहादुर पाल इनके वंसज जगत बहादुर पाल के पुत्र हरिहर पाल्य देव दान बहादुर पाल हरिहर पाल्य देव के युगल पुत्र ज्ञान बहादुर पाल्य देव चन्द्रिका बक्स पाल्य देव निकट बैलदुहा में निवास बना के २२ गांव के जमींदारी का सचालन किया एक भब्या कत्यूरी वन्स के अनुरूप भ...