[02/05, 06:14] A B Pal: भृगु वंशिय क्षत्रिय और इसी वंश में पैदा हुए दधीचि के वंशज आज भी क्षत्रिय हैं तो परसुराम ब्रामण कैसे हुए परसुराम क्षत्रिय से ब्रम्ह को प्राप्त किया था [02/05, 06:14] A B Pal: देवी लक्ष्मी महर्षि भृगु और ख्याति की पुत्री थी। बाद मे शाप के कारण देवी लक्ष्मी को समुद्र में डूब कर रहना पड़ा था।सागर मंथन के समय नवरत्नों में देवी लक्ष्मी भी निकली थी। जिसे भगवान विष्णु ने पुनः पत्नी के रूप में ग्रहण किया था बाद के प्रसंग के अनुसार देवी लक्ष्मी समुद्र की पुत्री कहलाती है। [02/05, 06:14] A B Pal: महर्षि दधीचि भृगु वंश में पैदा हुए थे. वे भृगु वंश के महान ऋषियों में से एक थे. महर्षि दधीचि की कहानी भृगु वंश से जुड़ी है, जो एक प्राचीन वंश है. दधीचि ने देवताओं को अपने शरीर की हड्डियों का दान दिया था, जिससे इंद्र का वज्र बनाया गया था. इस दान के कारण, वे परम दानी और लोककल्याण के लिए समर्पित ऋषि के रूप में जाने जाते हैं. [02/05, 06:14] A B Pal: राजपूत वंशावली पेज नंबर-123 के अनुसार- नागौर जिले के परबतसर से चार मील की दूरी पर किनसरिया गाँव है ,जहाँ अरावली पर्वत शृ...
अमोढ़ा राजा जालिम सिंह का गौरवशाली इतिहास ========================== भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास जिन अमर शहीदों के लहू से लिखा गया, उनमें देश की आधी आबादी ने भी अपना योगदान दिया था।और इस विद्रोह के अन्त में ईस्ट इंडिया कम्पनी का भारत में शासन खत्म हो गया तथा ब्रिटेन सरकार का प्रत्यक्ष शासन प्रारम्भ हो गया जो कि अगले 90 सालों तक चला। 1857 के विद्रोह में सिर्फ़ बेग़म हज़रत महल और रानी लक्ष्मीबाई ने ही हिस्सा नहीं लिया था,मगर इस तथ्य से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि आज़ादी की लड़ाई में कंधे से कंधा मिला कर जिन गुमनाम क्रांतिवीरों तथा वीरांगनाओं ने सहयोग और समर्थन दिया, उनका तो कहीं जिक्र भी नहीं मिलता। दुर्भाग्य से उनमें से ज्यादातर को भुला दिया गया। जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष में अपना सर्वस्व बलिदान किया और देश की जनता पर अमिट छाप छोड़ी। ऐसा ही एक अलिखित और अनछुआ मगर गौरवशाली इतिहास अयोध्या और बस्ती के बीच रामजानकी मार्ग पर बसा हुआ अति प्राचीन अमोढ़ा नामक राज्य का है। तो दोस्तों,आइए अमोढ़ा राज्य का इतिहास ,भूगोल, उसकी स्थापना, सामाजिक संरचना, उसकी विकास यात्रा तथा आज़ाद...