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अमोढ़ा राजा जालिम सिंह का गौरवशाली इतिहास

 अमोढ़ा राजा जालिम सिंह का गौरवशाली इतिहास ========================== भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास जिन अमर शहीदों के लहू से लिखा गया, उनमें देश की आधी आबादी ने भी अपना योगदान दिया था।और इस विद्रोह के अन्त में ईस्ट इंडिया कम्पनी का भारत में शासन खत्म हो गया तथा ब्रिटेन सरकार का प्रत्यक्ष शासन प्रारम्भ हो गया जो कि अगले 90 सालों तक चला। 1857 के विद्रोह में सिर्फ़ बेग़म हज़रत महल और रानी लक्ष्मीबाई ने ही हिस्सा नहीं लिया था,मगर इस तथ्य से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि आज़ादी की लड़ाई में कंधे से कंधा मिला कर जिन गुमनाम क्रांतिवीरों तथा वीरांगनाओं ने सहयोग और समर्थन दिया, उनका तो कहीं जिक्र भी नहीं मिलता। दुर्भाग्य से उनमें से ज्यादातर को भुला दिया गया। जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष में अपना सर्वस्व बलिदान किया और देश की जनता पर अमिट छाप छोड़ी। ऐसा ही एक अलिखित और अनछुआ मगर गौरवशाली इतिहास अयोध्या और बस्ती के बीच रामजानकी मार्ग पर बसा हुआ अति प्राचीन अमोढ़ा नामक राज्य का है। तो दोस्तों,आइए अमोढ़ा राज्य का इतिहास ,भूगोल, उसकी स्थापना, सामाजिक संरचना, उसकी विकास यात्रा तथा आज़ाद...
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सूर्यवंश कुल में जन्म लिए भगवान बुद्ध

 नाम:- सिद्धार्थ सिंह गौतम(गौतम बुद्ध ) धर्म-सत्य सनातन धर्म  जन्म तिथि:-563 ईसा पूर्व जन्म स्थान:- कपिलवस्तु नेपाल  पिता:-राजा शुद्धोधन गौतम माता:- रानी महामाया कोलिय vansh  कुल:- इक्ष्वाकु वंशीय क्षत्रिय शाक्य(सूर्यवंशी) पत्नी:- राजकुमारी यशोधरा पुत्र:- राहुल सिंह  ✍ गौतम बुद्ध जिनका असली नाम सिद्धार्थ सिंह गौतम था इन का जन्म प्रभु श्री राम जी की 75 वी पीढ़ी क्षत्रीय वंश,पुत्र कुश की पीढ़ी में हुआ था--- ✍अब प्रश्न शुरू होता हैं कि आजकल कुछ लोग बुद्ध धर्म अपनाकर सनातन हिन्दू धर्म को भला बुरा कहते हैं और तो ओर प्रभु श्रीराम के अस्तिव को ही नही मानते हैं तथा वामपंथी और विधर्मीयो की गढ़ी हुई मनगढ़ंत कहानियां सुनाते हैं, लोगो को मूर्ख बनाते हैं । वो लोग इस तथ्यपरक जानकारी को पढ़े और सत्य को पहचाने..... 💐सत्य सनातन धर्म की जय हो💐 🙏🙏🚩हर हर महादेव 🚩🙏🙏 🙏🙏🚩जय श्री राम 🚩🙏🙏

पाली पोछाऊ, कत्यूरी राजाओं के प्राचीन राजधानी लखनपुर क्षेत्र सूक्ष्म भौगोलिक एवं धार्मिक प्रशासनिक जानकारी

 पाली पोछाऊ, कत्यूरी राजाओं के प्राचीन राजधानी लखनपुर क्षेत्र सूक्ष्म भौगोलिक एवं धार्मिक प्रशासनिक जानकारी विराटनगर का भौगोलिक वर्णन हमें जानना जरूरी है यह क्षेत्र जौरासी ,द्रोणागिरी ,मांनिला , नागार्जुन,गुजडु, का डाना आदि प्रमुख पर्वतों से घिरा है नदियां रामगंगा गगास विनोद नदी प्रमुख हैं,  रामगंगा जिसको शास्त्रों में  रथवाहनी कहा गया है ,गढ़वाल के दिवालीखाल से निकलती है और विनोद नदी गढ़वाल के दुधातोली क्षेत्र के बिंद्रेश्वर से निकलती है बूढ़ा केदार में रामगंगा नदी से इसका संगम होता है, तथा गगास नदी भटकोटसे निकलती है और बिन्ता,बासुलीसेरा शिलोरघाटी होते हुए भिकियासेन  में रामगंगा नदी में उसका मिलन होता है वहां पर एक प्राचीन शिव मंदिर भी है जो ग्राम सभा सबोली रौतेला में आता है, प्रमुख मंदिर बुढ़केदार विमानडेस्वर,  चित्रेश्वर ,श्रीनाथेसर नारायण नागार्जुन ,बदरीनाथ विष्णु शीतला, दूनागिरी में मां वैष्णो देवी, का मंदिर मां कैला देवी ,नैथणा देवी, अग्निदेवी (अगनेरी मंदिर कत्यूरी राजाओं की कुलदेवी)देघाट में भगवती मंदिर टामाढौन में राजा सारंगदेव द्वारा निर्मित तामलीदेवी (...

सौर राजपूतों के, इक्ष्वाकु के वंशज : जिन्हें स्थानीय रूप से कत्यूरी के नाम से जाना जाता

 सौर राजपूतों के, इक्ष्वाकु के वंशज, जिन्हें स्थानीय रूप से कत्यूरी के नाम से जाना जाता था। उनका मुख्यालय कत्यूर घाटी में कार्तिकेयपुर में था। उनका नाम उनके कुल देवता कार्तिकेय के नाम से लिया गया है, जो कत्यूर घाटी (अल्मोड़ा जिले) में बैजनाथ के पास स्थित है। यह वही कार्तिपुरा था जो गुप्त सम्राट समुद्रगुप्त द्वारा लगभग 350 ई. में जीते गए राज्यों की सूची में आता है और कार्तिकेयपुर के खास राजा को चंद्रगुप्त द्वितीय ने (लगभग 375 ई. में) मार डाला था ताकि अपने भाई की हार का बदला लिया जा सके और अपनी भाभी को कैद से छुड़ाया जा सके (जैसा कि राजशेखर की काव्यमीमांसा में उल्लेख किया गया है)। कत्यूरी साम्राज्य बारहवीं शताब्दी में कमज़ोर शासकों के कारण विघटित हो गया और इसकी शाखाओं ने डोटी (नेपाल में काली नदी के पार), सीरा (शेरा या शिरा), शोर और गंगोली जैसी स्वतंत्र रियासतों का निर्माण किया।" एक अन्य शाखा असकोट में बस गई, एक तिहाई बाराहमंडल में, एक चौथी ने अभी भी कत्यूर और दानपुर पर कब्ज़ा किया हुआ था और पाँचवीं की पाली में कई बस्तियाँ थीं, जिनमें से प्रमुख द्वार हाट और लखनपुर थीं।" स्थानीय ...

राणा सांगा

 राणा साँगा ने बाबर के खिलाफ एक दुर्जेय सैन्य गठबंधन बनाया था। वह राजस्थान के लगभग सभी प्रमुख राजपूत राजाओं में शामिल थे, जिनमें हरौटी, जालोर, सिरोही, डूंगरपुर और ढुंढार शामिल थे। मारवाड़ के गंगा राठौर मारवाड़ व्यक्तिगत रूप से शामिल नहीं हुए, लेकिन अपने पुत्र मालदेव राठौर के नेतृत्व में एक दल भेजा। मालवा में चंदेरी की राव मेदिनी राय भी गठबंधन में शामिल हुईं। इसके अलावा, सिकंदर लोदी के छोटे बेटे महमूद लोदी, जिन्हें अफगानों ने अपना नया सुल्तान घोषित किया था, भी उनके साथ अफगान घुड़सवारों की एक टुकड़ी के साथ गठबंधन में शामिल हो गए। मेवात के शासक खानजादा हसन खान मेवाती भी अपने आदमियों के साथ गठबंधन में शामिल हो गए। बाबर ने उन अफ़गानों की निंदा की जो उनके खिलाफ 'काफ़िरों' और 'मुर्तद' के रूप में गठबंधन में शामिल हुए (जिन्होंने इस्लाम से धर्मत्याग किया था)। चंद्रा का यह भी तर्क है कि बाबा को निष्कासित करने और लोदी साम्राज्य को बहाल करने के घोषित मिशन के साथ संघ द्वारा एक साथ बुने गए गठबंधन ने राजपूत-अफगान गठबंधन का प्रतिनिधित्व किया।  केवी कृष्णा राव के अनुसार, राणा साँगा बाबर ...

कार्तिकेय राजवंश: हड़हा बाराबांकी

 सौर राजपूतों के, इक्ष्वाकु के वंशज, जिन्हें स्थानीय रूप से कत्यूरी के नाम से जाना जाता था। उनका मुख्यालय कत्यूर घाटी में कार्तिकेयपुर में था। उनका नाम उनके कुल देवता कार्तिकेय के नाम से लिया गया है, जो कत्यूर घाटी (अल्मोड़ा जिले) में बैजनाथ के पास स्थित है। यह वही कार्तिपुरा था जो गुप्त सम्राट समुद्रगुप्त द्वारा लगभग 350 ई. में जीते गए राज्यों की सूची में आता है और कार्तिकेयपुर के खास राजा को चंद्रगुप्त द्वितीय ने (लगभग 375 ई. में) मार डाला था ताकि अपने भाई की हार का बदला लिया जा सके और अपनी भाभी को कैद से छुड़ाया जा सके (जैसा कि राजशेखर की काव्यमीमांसा में उल्लेख किया गया है)। कत्यूरी साम्राज्य बारहवीं शताब्दी में कमज़ोर शासकों के कारण विघटित हो गया और इसकी शाखाओं ने डोटी (नेपाल में काली नदी के पार), सीरा (शेरा या शिरा), शोर और गंगोली जैसी स्वतंत्र रियासतों का निर्माण किया।" एक अन्य शाखा असकोट में बस गई, एक तिहाई बाराहमंडल में, एक चौथी ने अभी भी कत्यूर और दानपुर पर कब्ज़ा किया हुआ था और पाँचवीं की पाली में कई बस्तियाँ थीं, जिनमें से प्रमुख द्वार हाट और लखनपुर थीं।" स्थानीय ...

महाराजाधिराज लखनपालदेव ने कात्र्तिकेयपुर में बैजनाथ का मन्दिर बनवाया था

 हाल ही में अल्मोड़ा पुरातत्व विभाग के अन्वेषण सहायक डाॅ. चन्द्र सिंह चैहान ने बैजनाथ के महन्त की कुटिया से राजा लखनपाल का एक विशाल शिलालेख का पता लगाया है जिससे पता चलता है कि महाराजाधिराज लखनपालदेव ने कात्र्तिकेयपुर में बैजनाथ का मन्दिर बनवाया था। अभी तक लेखपाल के तीन लेख ज्ञात थे- (1) गणानाथ की लक्ष्मी- नारायण की मूर्ति के पाद लेख से पता चलता है कि उसका निर्माण राजा लखनपाल ने 1105 ई. में करवाया था। (2) बैजनाथ संग्रहालय अथवा गोदाम में बन्द कुमाउनी भाषा के उन्नीस पंक्ति के शिलालेख से पता चलता है कि राजा लखनपाल ने बैजनाथ मन्दिर की पूजा-व्यवस्था के लिए चनौदा गाँव दान किया था। उसमें ‘बैजनाथ हुनि दीन्ही’ का प्रयोग होने से यह स्पष्ट है कि लखनपाल के राज्य में संस्कृत भाषा के साथ-साथ कुमाउनी भाषा का प्रयोग भी होने लगा था। (3) तीसरा शिलालेख बदायूँ से मिला है जो कत्यूरी साम्राज्य में ‘वाँधवगढ़’ कहलाता था। मध्यकालीन तुर्क इतिहासकारों के अनुसार बदायूँ कटेहर (आधुनिक रुहेलखंड) राजधानी थी। उसके लिए दिल्ली सल्तनत और कत्यूरी राज्य में निरन्तर संघर्ष चलता रहता था। लखनपाल का बदायूँ लेख भारतीय पुरात...